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कि 'जार घर का मालिक बन बैठा है।' इसलिए मैंने उसे मारने का यह उपाय रचा है। इससे अगर वह मारा नहीं गया तो देश-त्याग तो होगा। तेरे सिवाय दूसरा इस तरकीब को नहीं जानेगा ! अपने मतलब के लिए यह जरूरी है। कहा भी है
"हृदय को कठोर बनाकर और वाणी को छुरे की तरह तेज बना
कर बिना सोचे-विचारे अपने अपकारी को मार डालना चाहिए।
दूसरे, मरने पर भी वह हमारा भोज्य बनेगा। एक तो वैर का बदला मिलेगा और दूसरे मंत्रिपद और भूख भी मिटेगी। इन तीन लाभों के सामने आते हुए भी तू क्यों मुझे बेवकूफी से दोष देता है ? कहा है कि
"दुश्मन को पीड़ित करते हुए और अपनी स्वार्थ-सिद्धि करते हुए पंडित पुरुष वन में रहते हुए चतुरक की तरह चाल लक्ष्य न करे तो
उसे बेवकूफ मानना चाहिए।" करटक ने कहा , “यह कैसे ?” दमनक कहने लगा
वजूदंष्ट्र सिंह, सियार और भेड़िए की कथा "किसी वन में वजूदंष्ट्र नामक सिंह रहता था। उसके चतुरक और ऋव्यमुख नामक क्रमशः एक सियार और भेड़िया नौकर सदैव उसके अनुगत होकर उसी वन में रहते थे। सिंह ने एक दिन एक ऊंटनी को,जिसका प्रसवकाल नजदीक आ गया था और जो उसकी पीड़ा के कारण अपने झुंड, से अलग हो गई थी,वन में देखा । उसे मारकर सिंह उसका पेट फाड़ रहा था कि उसमें से जीता-जागता एक ऊंट का बच्चा निकल पड़ा। अपने परिवार के साथ ऊंटनी का मांस खाकर सिंह तृप्त हो गया। बाद में स्नेह के साथ ऊंट के बच्चे को अपने घर ले जाकर कहने लगा, "भद्र ! तुझे मृत्यु से, मुझसे अथवा और किसी दूसरे से डर नहीं है। इसलिए तू अपनी मौज से इस वन में घूम । अकुंश की तरह कान होने से मैं तेरा नाम शंकुकर्ण रखता हूं।" यह बात तय हो जाने पर एक साथ विहार करते हुए तथा आपस में संग-साथ के सुखों को अनुभव करते हुए चारों पशु रहने लगे ।