________________
५. सम्यक व मिथ्या ज्ञान - ७० १०. वस्तु पढने का उपाय किसी ज्ञानी का सम्पर्क अत्यन्त आवश्यक है , जिसके बिना उसका अर्थ ठीक समझना बहुत कठिन है और इसलिये उसके बिना वह ज्ञान वेकारवत है।
दृष्टान्त मे तो गृहस्थ सबधी तथा अर्थोपार्जन संबंधी लालच रहने के कारण इतना समय किसी के पास रहना भी गवारा कर लेता है । पर यहां तो कुछ भी लालच नही है, सो क्यों किसीके पास रहकर समय गवाया जाये, ऐसी धारणा पड़ी है, फिर तू ही बता कि कैसे इसका अर्थ समझने का उपाय तू सीख सकेगा। भाई ! लौकिक व्यापारोक्त यह भी तो एक व्यापार है यदि जीवन मे इसकी कोई आवश्यकता है, तो अवश्य ही समय किस जिस प्रकार भी निकालना ही पड़ेगा, और यदि इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं तो अर्थ समझ कर भी क्या करेगा। फिर भी सव यहा एकत्रित हुए हो और मुझसे पूछते हो तो अपनी योग्यतानुसार कुछ बताने का प्रयत्न करूंगा ही। पर इतना बता देना चाहता हूँ कि वह मेरा बताया हुआ भी तो पूर्ववत् शाब्दिक ज्ञान का ही अंग मात्र वनकर रह जायगा । उसका भी रहस्यार्थ कैसे समझा जा सकेगा जब तक कि उस पढ़े हुए का प्रयोग कर करके अर्थ निकालने का स्वय प्रयास न करेगा, और अर्थ न निकलने पर किसी से पूछेगा नही।
ले बताता हूँ , समझ । आगम शब्दो का अर्थ तुझे वस्तु मे जाकर
यह बात पहिले ही हृदय मे दृढ बैठा ले । शब्द १०. वस्तु के याद करने के प्रति जो महिमा तुझे आज वर्तती पढने का है उसे धो डाल और वस्तु को पढने का यत्न उपाय कर। वस्तु को पढने के लिये पहिले यह क्रम
है, कि वस्तु को खडित करके देख । फिर उसके प्रत्येक खड का सूक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण कर और उसके भाव को