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५. सम्यक व मिथ्या ज्ञान ६६ ६. ज्ञानी के सानिध्य का सम्यग्ज्ञान
प्राप्ति मे स्थान पूर्णतः, निर्दोष ही है, वह तो अपने प्रतिपादित विषयो की अपेक्षा सम्यक् ही है । अतः भाई ! अब उसके वाक्यों का ठीक ठीक अर्थ बैठाने का अभ्यास कर ।
यद्यपि यह कार्य बड़ा कठिन है और समस्या बड़ी जटिल है
पर संम्भव है असंभव नहीं। सौभाग्यवश यदि ज्ञानी के स निध्य किसी ज्ञानी अर्थात् आगम रहस्य के ज्ञाता अर्थात् का सम्यग्ज्ञान आत्मानुभवी का सयोग प्राप्त हो जाये, तो कुछ प्राप्ति में
सुविधा हो सकती है, क्योकि भिन्न भिन्न अवसरों स्थान पर उपजने वाली गुत्थियों व शकाओं का समाधान
व सम्मेलन बैठाकर किस प्रकार विरोधों को दूर
करना है और अर्थ फिट बैठाना है यह उसके पास में रहकर हो पढा जा सकता है। इसकी कोई ट्रेनिग नहीं होती। देख लौकिक व्यापारो मे भी सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् इससे पहिले कि वह उस व्यापार को प्रारम्भ करे छात्र को किसी अभ्यस्त व्यक्ति के सम्पर्क में कुछ दिन के लिये रहना पड़ता है। पुस्तको से पढा जा सकता है पर कढ़ा नहीं जा सकता । कढा जाने का एक मात्र उपाय ज्ञानीजनों का संसर्ग ही है । इसी से एल. एल. बी. या वकालात पढ लेने के पश्चात् उस छात्र को कम से कम ६ महीने किसी वकील के साथ रहकर वकालात मे किस प्रकार उस सिद्धान्त को लागू किया जाता है, यह बात पढनी पडती है । इस प्रकार ६ महीने के अभ्यास बिना उसे वकालात का लाइसेस नही दिया जाता। इसी प्रकार डाक्टरी पढ़ने के पश्चात् कुछ समय के लिये किसी होश्यार डाक्टर के पास, और इजीनियररिंग पढ जाने के पश्चात् कुछ समय के लिये किसी बड़े कारखाने मे रहकर काम सीखना पडता है जो अत्यन्त आवश्यक है। इस कढाई के बिना किताबी पढाई बेकार है । इसी प्रकार यद्यपि आगम ज्ञान महान् उपकारी है पर उसे पढने के पश्चात् उसमे बढने के लिये कुछ समय को