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५ सम्यक् व मिथ्या ज्ञान
६६ ७. काल्पनिक चित्रण, सम्यग्ज्ञान नहीं
जान अनुभवात्मक है, और इंजीनियर का शब्दात्मक | मिस्त्री भले किसी को पढा न सके परन्तु उस मशीन सबधी उसका ज्ञान स्पष्ट है, और इजीनियर अनेकों को शाब्दिक ज्ञान पढा दे पर मशीन सवधी उसका ज्ञान अस्पष्ट व मिथ्या है।
अब तक के प्रकरण पर से सम्यक् व मिथ्या ज्ञान के निम्न लक्षण निकल पाये है। १. किसी विषय संवधी एक अखंड चित्रण का हृदय पट पर अकित
होना या उस सबधी अनुभव होना सम्यक् ज्ञान है ।
२. ऐसे अखड चित्रण या अनुभव के अभाव मे सर्व शाब्दिक आगम
ज्ञान भी मिथ्या ज्ञान है।
इन लक्षणों में अभी और विशदता लानी अभीष्ट है । केवल काल्पनिक । शाब्दिक ज्ञान ही मिथ्या हो ऐसा नहीं है, कदाचित चित्रण सम्यग्ज्ञान - उन शब्दों के भावों का ग्रहण भी मिथ्या ज्ञान हो नही सकता है । वह कब सो ही आगे बताता हूँ।
- देखिये वही ईट पत्थरों वाला दृष्टान्त ले लीजिये । मै यदि उन ईट पत्थरों से एक महल तो बनाकर खड़ा कर लू, पर बिना सोचे-विचारे जो कोई वस्तु उसमे जहा कही भी फिट कर दू। अर्थात् यह दर्वाजा तो वहां छत मे खोल दू जहां पखा लगा है और पंखा यहा खड़ा कर दू जहा मै बैठा हूँ। खिड़की वहां लगा दू जहां इस आतिश-खाने पर या शेल्फ पर कुछ चित्र आपने सजाकर रखे है, वह रोशनदान वहा पृथ्वी मे गाड़ दू जहां वह पायेदान पड़ा है, इन तस्वीरों को फर्श पर बखेर दू और यह सोफा सेट दीवार पर टांग दू, तो बताइये मेरा यह मूर्यो का सा कार्य क्या मेरे किसी भी काम आ सकेगा? क्या ऐसे बनाये गये महल का मै किसी प्रकार भी उपभोग कर सकूगा और क्या वह