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२२. निक्षप
६ द्रव्य निक्षेप
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जाता है । गुण-गुणी सम्बन्ध, पर्याय पर्याय सम्बन्ध अथवा निमित्त नैमित्तिक व स्वामित्व सम्बन्ध, इन सर्व प्रकार के सम्बन्धो रूप द्वैत अद्वैत देखना द्रव्याथिक नय का कामहै । अत: इस दृष्टि मे शरीरों आदि को भी 'ज्ञाता' कह देंना विरोध को प्राप्त नहीं होता । सारांश यह कि जीव को, या उसके शरीर को, या उसके ज्ञानावरणादि कर्मो को, या उसके धन कुटुम्बादि को, उस जीव सामान्य के साथ कोई न कोई सम्बन्ध होने के कारण उसी 'जीव रूप या उस की किस पर्याय रूप कह देना द्रव्य निक्षेप है । क्योकि द्रव्य निक्षेप द्रव्यार्थिक नय का विषय है।
अब द्रव्य निक्षेप सामान्य व विशेष के लक्षणो की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ निम्न उद्धरण देखिये ।
१. द्रव्य निक्षेप सामान्य
१. स.सि.।१।५।४६ “गुणगुणान्वा द्रुतगत गुणैर्दाष्यते गुणान्द्रोष्य
तीति व द्रव्यम् ।" अर्थ --जो गुणो को प्राप्त हुआ था अथवा जो गुणो को प्राप्त
होगा उसे द्रव्य कहते है। २. रा.वा.।१।५।३,४।२८ 'अनागतपरिणामविशेष प्रतिगृहीताभि
मुख द्रव्यम् । अयद्भाविपरिणामप्राप्ति प्रति योग्यतामादधान तद् द्रव्यभित्युच्यते । अ अथवा अतद्भाववाद्रव्यायित्युच्यते । यथेन्द्रार्थमानीत काष्ठमिन्द्रप्रतिमापर्यायप्राप्तिं
प्रत्यभिमुख 'इन्द्र.' इत्युच्यते ।” अर्थः-अनागत परिणाम विशेष को ग्रहण करने के अभिमुख
द्रव्य होता है । अर्थात आगामी पर्याय की योग्यता वाले उस पदार्थ को द्रव्य कहते है जो उस समय उस पर्याय के