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२२ निक्षेप -
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६. द्रव्य निक्षेप
६ शैलकर्म -पृथक पड़ी हुई शिलाओ मे जो प्रतिमाये वनाई जाती है, उन्हे शैल कर्म कहते है।
७ गृह कर्म -गोपुरो के शिखरो से अभिन्न ईट और पत्थर आदि के द्वारा जो प्रतिमाये चिनी जाती है उन्हे गृह कर्म कहते है ।
८ भित्ति कर्म -भित्ति से अभिन्न तृणों से जो प्रतिमाये वनाई जाती है उन्हे भित्ति कर्म कहते है ।
६ दन्तकर्म -हाथी के दाँत मे जो प्रतिमाये उत्कीर्ण की जाती है उन्हें दन्तकर्म कहते है।
१० भेंड कर्म –से घड़ी हुई प्रतिमाओ को भेड कर्म कहते है ।
(घापु । 'मे भेड सुप्रसिद्ध है' ऐसा कहकर छोड़ दिया है । अत. भेड के भाव के अर्थ भासता नहीं।)
११ अन्य भी-आदि शब्द से कासा, ताबा, चादी और सुवर्ण आदि द्वारा साचे मे ढाली गई प्रतिमाए भी ग्रहण करनी चाहिये । इस प्रकार सद्भाव स्थापना के आधार का कथन हुआ ।
१२ असद्भाव स्थापना के भेद -द्यूतकर्म की स्थापना मे जो अय पराजय के निमित्त भूत छोटी कौडियां और पॉसे होते है उन्हे अक्ष कहते है, और इनके अतिरिक्त कौड़ियो को वराटक कहते । है इस प्रकार इन दोनो पदो के द्वारा असद्भाव स्थापना का विषय दिखलाया है। (ध । पु । पृ २४६॥ ५)
वर्तमान मे तो अमुक गुण किसी मे दिखाई न दे पर पहले कभी ६. द्रव्य निक्षेप वह गुण उसमे था अवश्य या भविप्यत में वह गुण उसमे प्रगट होने वाला है अवश्य, ऐसी स्थिति वाले किसी व्यकि