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२२ निक्षेप
५. स्थापना निक्षेप
२ असद्भाव स्थापना -- तथा जिस वस्तु की स्थापना की जाती है उसके आकार से रहित वस्तु में असद्भाव स्थापना जानना चहिये ।
( वृ न च । २७३ ) ( ध | पु. १३ | पृ. ४२।५ )
२. ध. पु. १३ । प ६ । स् १० " जो वह स्थापना स्पर्श है वह काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पोतकर्म, लेप्यकर्म, लयनकर्म, शैलकर्म, गृहकर्म भित्तिकर्म, दन्तकर्म, और भेडकर्म इनमे; तथा अक्षवराटक एवं इनको लेकर इसी प्रकार और भी जो एकत्व के संकल्प द्वारा स्थापना अर्थात् बुद्धि मे स्पर्शरूप से ( यहां 'स्पर्श' का प्रकरण द्वारा अतः स्पर्श पर निक्षेप लागू किये जा रहे है ) स्थापित किये जाते है वह सब स्थापना स्पर्श है । १० ।
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१, काष्ठकर्म दो पैर, चार पैर, विना पैर और बहुत पैर वाले प्राणियों की काष्ठ मे जो प्रतिमाये बनाई जाती है उन्हें काष्ठकर्म कहते है ।
२. चित्रकर्म – जब ये ही चार प्रकार की प्रतिमाये भित्ति ( दीवार ) वस्त्र, और स्तम्भ आदि पर रागवर्त अर्थात वर्ण विशेषो के द्वारा चित्रित की जाती है तब उन्हे चित्र कर्म कहते है ।
३. पोतकर्म - घोडा, हाथी, मनुष्य, स्त्री, वृक और बाघ आदि की वस्त्र विशेष मे उकेरी गई प्रतिमाओ को पोतकर्म कहते हैं ।
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४. लेप्यकर्म – मिट्टी खड़िया और बालू आदि के लेप से जो प्रतिमाए बनाई जाती हे उन्हे लेप्यकर्म कहते है ।
५. लयनकर्म. - शिला स्वरूप पर्वतों से अभिन्न जो प्रतिमायें बनाई जाती हैं उन्हें लयन कर्म कहते हैं ।