________________
१ ग्रन्य अनेको नय
७३४
२. सर्व नयो का मूल
नयो में अन्तर्भाव
३० काल नय
''आत्मद्रव्य कालनय से, जिसकी सिद्धि समय पर आधारित है ऐसा है जैसे कि गर्मी के दिनो के अनुसार स्वतः पकने वाला आम्नफल ।" प्रत्येक पर्याय के स्वतत्र उत्पाद व व्यय स्वभाव को ग्रहण करने के कारण यह लक्षण 'उत्पाद व्यय सापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिक' नय में तथा अव्यात्म पद्धति के 'गुध्द सद्भूत व्यवहार' नय मे गर्भित -दोता है।
३१ अकाल तय
"आत्मद्रव्य अकाल नय से, जिस की सिद्धि समय पर आधारित नहीं है ऐसा है-समय से पहले ही कृत्रिम गर्मी से पकाये गये आम्रफल वत् ।" 'जब निमित्त मिले तभी कार्य हो जाये' ऐसा - कर्ता कर्म भाव जोड़ देने के
. . 1 पदार्थो के साथ नही । - -. . . कारण यह लक्षण आगम पद्धति का विषय
। अध्यात्म पद्धति में यह 'असदभूत व्यवहार' नय मे गर्भित हाता है।
३२ पुरुषाकार नय -
"आत्मद्रव्य पुरुषाकार नय से, जिसकी सिद्धि यत्न साध्य है ऐसा है-पुर पार्थ करके सगतरे के वृक्ष को प्राप्त करने वाले पुरुषार्थ वादी वन् ।" द्रव्य की पूर्वी पर पर्यायो मे ही कर्ता कर्म रूप द्वैत उत्पन्न करने के कारण यह लक्षण आगम पद्धति के 'भेद सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक तथा व्यवहार नय' मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'सदभूत व्यवहार नय' में गर्भित होता है। ३३ देव नय
"आत्मद्रव्य देवनय से, जिसकी सिद्धि अयत्न साध्य है-पुरुषाकार बादी को द्वारा प्राप्त किये गये संगतरे के वृक्ष में से जिस को भाग्य या रत्न प्राप्त हो गया है एसे दैववादी की भाति ।" कर्मो को अर्थात्