________________
१६. व्यवहार नय
३. व्यवहार नय सामान्य का लक्षण
(अर्थ.-एक होते हुए भी दर्शन-ज्ञान-चारित्र इन तीनों के
द्वारा परिणत होने के विस्वभाव के कारण व्यवहार
से आत्मा मेचक अथवा भेद रूप है ।) ६.प. क. । भाषा ।४७।६४ "एक वस्तु में भेद दिखाया जाये ।
उसका नाम एकत्व व्यवहार कहा जाता है। २. लक्षण न. २ (भेद रूप भिन्न द्रव्यों में अभेदोपचार):
, १.स. सा । ।२७२ "पराश्रितो व्यवहारनय."
(अर्थ-दूसरे द्रव्य के आश्रित कथन करना व्यवहार नय है।) २.त. अनु ।२६ "व्यवहारनयो भिन्नकर्त कर्मदिगोचरः ।२९।"
अर्थः-व्यवहार-नय मिन्न द्रव्यो मे कती कर्म आदि बताता है।) ३ श्ल वा । पु.२ । प.५८५ । ८ "दो द्रव्य के सम्मेल से बने
अशुद्ध द्रव्य को जानना रूप प्रयोजन को धारने वाला व्यवहार नय है।"
अन्य वस्तु मे अन्य वस्तु का आरोपण अन्य के न ४ द पा । २। प जयचन्द 'निमित्त तै तथा प्रयोजन के वश प. ५।२६
तै करिये सो भी व्यवहार है।"
५.प का भाषा ।४७. १६४ “जहा पर भिन्न द्रव्यो में एकता का
सम्बन्ध दिखाया जाये उसका नाम पृथक्त्व व्यवहार कहा जाता है ।"
६. प्र. सा. ।त. प्र ।२।६७ 'यस्तु पुद्रगलपरिणामात्मककर्म स
एंव पुण्यपापव्दैत, पुद्रगल परिणाम स्यात्मा की, तस्योप