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प्रमाण व नय --
दिनाक २५-६,६०
प्रवचन न.४
- १. अभ्यास करने की प्रेरणा, २. अखड़ित ज्ञान का अर्थ ।
जीवन की मलिनता ज्ञान की मलिनता से है और ज्ञान की
मलिनता खेचातानी या एकान्त रूप है । अनेकान्त भ्यास रूप गुरुदेव की शरण मे आकर, इनकी सरलता को करने की प्रेरणा पढ़ कर, जीवन के इस मैल को यदि धोने का प्रयास
करूं तो क्या संभव न हो सकेगा?' अवश्य हो सकेगा। अभ्यास में बड़ी शक्ति है। शरीर का मैल छुड़ाने को साबुन का प्रयोग होता है और ज्ञान का मैल छड़ाने को अभ्यास का । इसके अतिरिक्त अन्य मार्ग नहीं। सामने आई हुई कोई भी बात किस प्रकार यथा स्थान फिट बिठाई जाय, यह कार्य अभ्यस्त व्यक्ति ही कर सकता है, सर्व साधारण जन नहीं और इसीलिये उसे ज्ञानी कहा जाता है। हर व्यक्ति ज्ञानी हो सकता है, शक्ति उसके पास है, यदि प्रयोग करे तो।