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१६. व्यवहार नय
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१.व्यवहार नय सामान्य
का परिचय
विधिपूर्वक भेद डालना सो व्यवहार है। यह नय वस्तुकी अखडता मे भेद डालता है इसलिये व्यवहार कहलाता है क्योकि वास्तव में तो वस्तु अखण्ड़ है, अतः गुण पर्याय आदि का भेद करके उसकी व्याख्या करने का जो ढग व्यवहार नय का विषय है, वह उपचार कहने में आता है । जो वस्तु उस प्रकार की न हो पर किसी प्रयोजन वश उस प्रकार की कहने मे आये उसे उपचार कहते है । उस उपचार का प्रतिपादक होने के कारण इस नय को असत्यार्थ व अभूतार्थ माना जाता है, औरइसी लिये ज्ञानी जन
सदा उसका अर्थात उसके विषय भूत भेद कल्पनाओ • का आश्रय छोड़ने को कहते रहते है।
व्यवहार नय का कथन प्रारम्भ करने से पहले यहां उपचार के २ उपचार के भेद भेद प्रभेदों का परिचय पाना अत्यन्त आवश्यक व लक्षण है, क्योंकि वही व्यवहार नय के लक्षण मूल
आधार है । यह उपचार दो प्रकार करने में आता हैपदार्थ मे भेद करके द्रव्य व उसके अंगो के बीच स्वामी व सम्पत्ति रूप सम्बन्ध स्थापित करना, जैसे ज्ञान जीव का गुण है ऐसा कहना, और दूसरा उनमे कर्ता कर्म या कारण कार्य आदि भावों की स्थापना करना-जैसे जीव ज्ञान द्वारा जानता है ऐसा कहना । दूसरा उपचार है दो भिन्न पदार्थो को एकमेक करके एक का स्वामित्व सम्बन्ध दूसरे के साथ स्थापित करना जेसे यह घर उस व्यक्ति का है ऐसा कहना और उनमें कर्ता कर्म या कारण कार्य आदि भावो की स्थापना करना जैसे इस घर मे वह रहता है ऐसा कहना। उपचार दो प्रकार का हुआ। उसी