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१८ निश्चय नय ६२६ १०. अशुद्ध निश्चय नय
का लक्षण __ शुद्ध निश्चय नय की भाँति अश द्ध निश्चय नय का भी १० अशुध्द निश्चय लक्षण है। अन्तर केवल इतना है कि वहा
नय का लक्षण तो शुध्द भाव के आधार पर जीव द्रव्य का दर्शन कराया जा रहा था और यहा अशुद्ध भाव के आधार पर जीव को दर्शाया जाये गा । वहा तो क्षायिक भावों के साथ तन्मय रहने वाले को जीव कहा गया है और यहा औदायिक व क्षयोपर्शामक भावों के अश द्धाश के साथ तन्मय रहने वाले को जीव कहा जाता है । अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय और अशुद्ध निश्चय नय मे बड़ा अन्तर है । वहा तो गुण गुणी मे भेद दर्शाना इष्ट था, पर यहा द्रव्य के साथ उसकी अशुद्धः पर्याय का अभेद दश निा इष्ट है । क्योकि निश्चय नय सामान्य का लक्षण गुण व गुणी मे अभेद दर्शाना ही है ।
__ स्वाश्रित भावों या पर्यायो के साथ तन्मय रहने के कारण निश्चय नय है । शद्ध भाव भी जीव के अपने है और अशुद्ध भी । यह बात पृथक है कि शुद्ध निश्चय से अश द्ध रागादि विकारो को जीव का भाव स्वीकारा नही जाता । वह तो इसलिये कि अपने विषय भूत शुध्द द्रव्य पर्याय मे वह दिखाई ही नहीं देते, बिलकुल उसी प्रकार जिस प्रकार की शुध्द द्रव्यार्थिक के विषय भूत पारिणामिक भाव मे वह दिखाई नहीं देते थे । परन्तु अशुद्ध निश्चय नय की दृष्टि मे तो जीव साक्षात रूप से रागादिको के साथ तन्मय दीखता है । अत. उस दृष्टि मे वे जीव के ही अपने भाव है जड कर्म के नही।
अशुद्ध औदायिक भावो से तन्मय द्रव्य सामान्य को ही पूर्ण अशुध्द देखना इस नय का लक्षण है ।
अब इसी की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण देखिये: