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१८ निश्चय नय
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६ शुद्ध निश्चय नय
का लक्षण
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मोक्ष मोक्ष कारण रूप शुद्ध परिणाम परिणमन समर्थत्वात्प्रभुर्भवति, शुद्ध भावाना परिणामान्तं कर्तृत्वात्कता भवति श द्धात्मोप्तवीतराग परमानन्द रूप सुखस्य भोक्तृत्वाद्भोक्ता भवति ।"
अर्थ-शद्ध निश्चय नय से केवल ज्ञान व दर्शन रूप (क्षायिक)
शुद्धोपयोग से युक्त होने के कारण जीव उपयोग लक्षण वाला है, मोक्ष व मोक्ष के कारण (क्षायिक) शुद्ध परिणाम रूप परिणमन करने में समर्थ होने के कारण प्रभु है, शुद्ध भावो रूप (क्षायिक) परिणामों को करने के कारण कर्ता है, शुद्धात्मा से उत्पन्न वीतरागपरमानन्द रूप (क्षायिक) सुख का भोक्ता होने के कारण भोक्ता
२. प का. । ता. व. । ६१।११३ "श ह निश्चयेन केवल ज्ञानादि
शुद्ध भावा स्वभाव भण्यते ।"
अर्थ-शुद्ध निश्चय से केवल ज्ञानादि (क्षायिक ) शुद्ध भाव
जीव के स्वभाव कहे जाते है ।
३ व० च० गद्य पृ २५ "निरुपाधि विपय शह निश्चयत , यथा
केवल ज्ञानादि जीव इति ।"
अर्थः--शुद्ध निश्चय नय का विपय निरुपाधि है, जैसे केवल
ज्ञानादि क्षायिक भाव ही जीव है, ऐसा कहना ।
वृ० न० च०।११५ "शुद्धो जीव स्वाभावो यो रहितो द्रव्य भाव कर्मभि । स शुद्ध निश्चयत. समासित शुद्ध ज्ञानिभि-1११५।"