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___१८ निश्चय नय
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६. शुद्ध निश्चय नय
का लक्षण
अर्थ-शुद्ध निश्चय नय से संसारिक सुख दुःख' कर्म जनित है
जीव जनित नही । क्योकि पारिणामिक भाव स्वरूप
शद्ध चेतना में उन का अभाव है। नोट --यह लक्षण परम शुद्ध निश्चय नय का है इस का विशेष
विस्तार शुध्द द्रव्यार्थिक नय के प्रकरण में किया गया है, वहा से जान लेना (देखो अध्याय न. १६ प्रकरण न १४) यहा तो केवल उसके कुछ उदाहरण मात्र
दे कर दिखाए है। यहा इतना ही अभिप्राय जानना है कि आगम मे जहां कही भी इस प्रकार जीव की अश द्ध पर्यायो को जीव का न कह कर कर्मो का कहा जाता है वहा परम शुद्ध निश्चय नय की अपेक्षा ही कहा जाता है, सर्वथा नही । नय ज्ञान से अनभिज्ञ सामान्य व्यक्ति उस को सर्वथा मान कर अपराध करते हुए भी अपने को अपराधी नही मानते, और इस प्रकार अपना अहित करते रहते है । पारिणामिक भाव की ओर लक्ष्य है जिसका, उस को ही रागादि भाव कर्मो के दीखते है, सर्व साधारण व्यक्ति गत जीवो को नहीं । क्योंकि वे तो अपने अन्दर उस समय परम शुद्ध निश्चय नय के विषय बने हुए भी नही है। अतः इस लक्षण को जान कर स्वच्छन्द पोषण करना युक्त नही । पारिणामिक भाव को लक्ष्य में रखने वाले जीव के हृदय मे तो स्वाभाविक रूप से सर्व सत्व मैत्री उछलती है, तब उस की हिसा आदि महान अपराधो मे प्रवृत्ति होना कैसे सम्भव हो सकता। क्योकि पारिणापिक भाव मे तो उसे स्व व पर सभी सामान रूप से प्रभु के आवास दिखाई देते है। प्रभु दिखाई देते है ।
२ लक्षण नं २ (क्षायिक भाव के साथ तन्मय द्रव्य सामान्य)
१. प
का. । ता. वृ । २७।६० 'शद्ध निश्चयेन केवल ज्ञानदर्शन रूप शुद्धोपयोगेन युक्तत्वादुपयोग विशेषता भवति