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१८. निश्चय नय
६. शुद्ध निश्चय नय
का लक्षण यहा 'जीव' शब्द का अर्थ त्रिकाली जीव न समझ कर सादि अनन्त मुक्त जीव समझना ।
संक्षेप से इन लक्षणों को इस प्रकार कहा जा सकता है.--
१ त्रिकाली शुद्ध भाव के साथ तन्मय द्रव्य सामान्य का ग्रहण शुद्ध
निश्चय नय है । २. क्षायिक भावो के साथ तन्मय द्रव्य सामान्य का ग्रहण शुद्ध
निश्चय नय है ।
__ इन दोनों लक्षणों की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण देखिये । उदाहरण भी उनमे ही आ जायेगे।
१ लक्षण नं १ त्रिकाली पारिणामिक भाव के साथ तन्मय द्रव्य
सामान्य:
१ पं का । ता. वृ ।१।४।२१ "शुद्ध निश्चयेन स्वस्मिन्नेवाराध्या
राधक भाव इति।" अर्थ--शुद्ध निश्चय नय से अपने मे ही आराध्य व आराधक
भाव है। अर्थात पर्याय आराधक है और द्रव्य आराध्य है।
२ प का ।ता वृ।२७।६०।१३ "शुद्ध निश्चयेन सत्ता चैतन्य बोधादि
शुद्ध प्राणर्जीवति, तथा शुद्ध ज्ञान चेतनया . .
युक्तत्वात् चेतयिता ।” अर्थ--शुद्ध निश्चय से तो जीव सत्तामात्र से अथवा चैतन्य या
ज्ञानादि शुद्ध प्राणों से जीता है, तथा शुद्ध ज्ञान चेतनायुक्त होने के कारण चेतयिता कहलाता है ।