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१८ निश्चय नय
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६. शुद्ध निश्चय नय
का लक्षण
से तन्मय रहने वाले द्रव्य, की सत्ता को ही स्वीकारना इस नय का विषय है। इस नय के तीन लक्षण किये जा सकते है।
१. समस्त भेदो से निरपेक्ष एक अभेद नित्य सत् या पारिणामिक
भाव स्वरूप ही द्रव्य को वताना परम निश्चय नय का लक्षण है । इसका कथन शुद्ध द्रव्यार्थिक नय के लक्षण मे आ चुका है । (देखो अध्याय न १६ प्रकरण न. १४) ।
२. त्रिकाली शुद्ध पारिणामिक भाव के साथ तन्मय रहने के कारण
उस ही के साथ द्रव्य सामान्य का अभेद, आधार आधेय, या कर्ता कर्मादि सम्बन्ध ग्रहण करना इसका लक्षण है ।
३ यह दो लक्षण तो त्रिकाली जीव सामान्य पर लागू होते है।
परन्तु यदि जीव को मुक्त व ससारी ऐसे दो भागो मे विभाजित करके इन्हे पृथक पृथक द्रव्यो के रूप में देखे तो मुक्त जीव शुद्ध है क्योंकि क्षायिक भावो का पिण्ड है और ससारी जीव अशुद्ध है क्योकि औदायिक व क्षायोपमिक भावो का पिण्ड है । यद्यपि यह दोनों भेद जीव द्रव्य नहीं कहे जा सकते, बल्कि उसकी पर्याय है, परन्तु अशुद्ध सग्रह नय की अपेक्षा अवान्तर सत्ता रूप होने के कारण इन्हे भी द्रव्य स्वीकार करके निश्चय नय का विषय बनाया जा सकता है । तथा शुद्ध निश्चय का विषय तो शुद्ध जीव अर्थात मुक्त जीव है और अशुद्ध निश्चय नय का विषय अशुद्ध जीव अर्थात ससारी जीव है । मुक्त जीव की तन्मयता क्षायिक भावो से है, इसलिये केवल ज्ञानादि क्षायिक भावो से तन्मय जीव का स्वरूप बताना शद्ध निश्चय नय का लक्षण है।