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१८ निश्चय नय
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६. शुद्ध निश्चय नय
का लक्षण जड व चेतन दोनो ही द्रव्य शुद्ध व अशुद्ध दशा मे रहते है । जड की शुद्ध दशा परमाणु है और अशुद्ध दशा स्कन्ध है। जीव की शुद्ध दशा क्षायिक भावो के साथ तन्मय सिद्ध दशा है और अशुद्ध दशा औदयिक व क्षायोपशमिक भावो के साथ तन्मय ससारी दशा है। इन दोनो के अतिरिक्त जीव की एक तीसरी दशा भी है जो कि साधक को दशा है । वह आशिक शुद्ध होती है और आशिक अशुद्ध, जिस प्रकार कि पकता हुआ भात आशिक पका हुआ है और आशिक कच्चा। इस दशा का नाम एक देश शुद्ध है । बस इन तीन दशाओ के आधार पर निश्चय नय के तीन भेद कर दिये गये-शुद्ध निश्चय, अशुद्ध निश्चय, और एक देश शुद्ध निश्चय। इन तीनो के अतिरिक्त एक चौथा भेद भी है जो त्रिकाली स्वभाव रूप है । यह पर्याय रूप नही है बल्कि पर्यायो से निरपेक्ष केवल स्वभाव रूप है । शुद्ध द्रव्याथिक नय के वा च्च जो पारिणामिक भाव उस के साथ तन्मय द्रव्य ही परम या साक्षात शुद्ध निश्चय का विषय है।
कदाचित प्रयोग करते समय इस चौथे भेद के नाम के साथ ६ शुध्द निश्चय साधारणत 'परम' या 'साक्षात' इन विशेषणो का नय का लक्षण प्रयोग नहीं किया जाता । केवल शुद्ध निश्चय नय ही कह देते है । अत आगम मे शद्ध निश्चय का प्रयोग दो अर्थो मे किया जाता है-एक पारिणामिक भाव ग्राहक और दूसरा क्षायिक भाव ग्राहक । द्रव्यार्थिक नय के प्रकारण मे केवल पारिणामिक भाव ग्राहक को ही शुद्ध विशेपण लगाया था, परन्तु यहा उसके अतिरिक्त क्षायिक भाव ग्राहक नय के साथ भी श द्ध विशषण लगाया गया है । अत दोनो शुद्ध, निश्चय नयो मे विवेक रखना योग्य है । आगम मे यह नाम देख कर अपनी बुद्धि से यह जान लेना चाहिये कि यह परम शुद्ध का कथन है या केवल शुद्ध का। यदि त्रिकाली स्वभाव को दर्शाते हुए शुद्ध निश्चय नय का प्रयोग किया है तो समझ