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निश्चय नय
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५ निश्चय नय के भेद प्रभेद
लक्ष्य कर । ताकि समस्त विकल्पो से युक्त उस परम अवस्था का उपभोग करने में सफल हो सके, ऐसा निश्चय नय का प्रयोजन है ।
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निश्चय नय
निश्चय नय क्योकि एक रस रूप अखण्ड तत्व को दर्शाता है इस लिये वास्तव में इस के भेद प्रभेद किये जाने के भेद प्रभेद युक्त नही, क्योकि इस का कोई भेद परिपूर्ण वस्तु को विषय न कर सकेगा । परिपूर्ण वस्तु ही निश्चय रूप से या सत्यार्थ रूप से वस्तु कही जा सकती है, और ऐसी परिपूर्ण वस्तु शब्द द्वारा कही नही जा सकती । अत निश्चय नय वास्तव में अवक्तव्य है । द्रव्यार्थिक नय के अन्तर्गत यह बात अच्छी तरह स्पष्ट की जा चुकी है | अध्याय १६ प्रकरण २ लक्षण न. ४ । फिर भी इस का स्पष्ट परिचय देने के लिये जिस प्रकार द्रव्यार्थिक नय के अनेको भेद प्रभेद किये जाते है उसी प्रकार यहा भी प्रयोजन वश भेद करक इसको जिस किस प्रकार समझाने का प्रयत्न करते है । सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर यह सब भेद व्यवहार नय रूप ही समझे जाने चाहिये और ऐसा आगम में स्वीकार भी किया गया है (देखो अध्याय १६ । प्रकरण ६ । लक्षण न. १ ) । परन्तु फिर भी वे भेद कथञ्चित निश्चय नय रूप ही बने रहते हैं क्योकि उन सभों मे किसी न किसी प्रकार गुण-गुणी अभेद वाला लक्षण घटित होता रहता है । निश्चय के इन भेदो व व्यवहार नय मे क्या अन्तर है इस प्रश्न का उत्तर तो व्यवहार नय के प्रकरण के अन्त मे दिया गया है वहा से जान लेना । यहां तो इतना ही जानना पर्याप्त है कि यहा सर्वत्र अपने गुण पर्यायो व कर्ता कर्म आदि भावों से अभिन्न एक रस रूप द्रव्य को दर्शाना मुख्य है, और वहा इस अद्वैत तत्व को खण्डित करके इसे ही गुण पर्यायो आदि वाला बताकर द्वेत दर्शाना मुख्य है ।..