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३. निश्चय नय सामान्य
१८ निश्चय नय
का लक्षण अर्थ-निश्चय नय से केवल ज्ञान दर्शन रूप शुद्धोपयोग से
युक्त् या तन्मय होने के कारण जीव उपयोग विश पण वाला है अर्थात उपयोग लक्षण वाला है।
३ लक्षण नं. ३ (स्वाश्रित भाव निश्चय है) --
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१ स सा ।पा। २७२ 'अत्माश्रितो निश्चयनयः पराश्रितो
व्यवहार नय ।
(नि सा। ता वृ।१५६) (अर्थः-- पराश्रित भाव व्यवहार है और स्वाश्रित भाव
निश्चय है।) २. स. सा. या ।५६ निश्चय नय स्तु द्रव्याश्रितत्वात्केवलस्य
जीवस्य स्वाभाविक भावमवलम्ब्योप्लवमान परभाव परस्य सर्वमेव प्रतियेधयति ।"
(अर्थ.-- निश्चय नय तो द्रव्याश्रित होने के कारण केवल जीव
के स्वाभाविक भावों को आश्रय करके उत्पन्न होता है ।
और पर के सर्व ही पर भावो का प्रतिषेध करता है।) ३. मो. मा. प्रा७।१७।३।३६६।१ "निश्चय नय' तिन (भावनि)
कौ यथावत निरूपण करै है, काहूं कौ काहूविषै न मिलावे है। (अर्थात एक हो द्रव्य के भाव को उस ही स्वरूप निरूपण करना सो निश्चय नय है)"
लक्षण नं ३ के कुछ उदाहरण
जैसे कि निम्न उद्घारणो मे जीव के सर्व ही शुद्ध या अशुद्ध अपने भाव निश्चय नय के विषय बना कर दर्शाये गये है।