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नय
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१८ निश्चय नय
२. अध्यात्म नयो के
भेद प्रभेद पृथक इन चारों भावो से तन्मय द्रव्य को भी चार कोटियो मे विभाजित किया जा सकता है और उस अभेद द्रव्य को विषय करने वाले निश्चय नय के भी इसलिये चार भेद हो जाते है । परम शुद्ध पारिणामिक भाव ग्राहक परम शुद्ध निश्चय नय, शुद्ध क्षायिक भाव ग्राहक शुद्ध निश्चय नय, क्षयोपशमिक भाव की एक देश शुद्धता ग्राहक एक देश शुद्ध निश्चय नय और अशुद्ध औदायिक भाव ग्राहक अशुद्ध निश्चय नय । यहा सर्वत्र उस भाव के ग्राहक से तात्पर्य उस उस भाव से तन्मय या अभेद द्रव्य सामान्य या द्रव्य पर्याय विशेष ही समझना, वह वह भाव या गुण पर्याय मात्र नहीं ।
वस्तु मे द्वैत भी दो प्रकार से देखा जा सकता है-एक तो गुणगुणी व पर्याय-पर्यायी रूप से वस्तु के निज अंगो की पृथक पृथक सत्ता स्वीकार करके उनका स्वामी द्रव्य को बताना अथवा द्रव्य व उन भावो मे लक्ष्य लक्षण तथा विशेष्य विशेषण भाव रूप द्वैत उत्पन्न करना । दूसरे दो पृथक सत्ता धारी द्रव्यो मे बाहर का कुछ निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध देख कर लक्ष्य लक्षण रूप से अथवा कर्ता-कार्य रूप से उनकी अद्वैतता की स्थापना करना ।
द्रव्य के अन्दर रहने वाले गुण व पर्याय आदि अग यद्यपि द्रव्य क्षेत्र, काल भाव रूप स्व चतुष्टय की अपेक्षा अभिन्न है परन्तु सज्ञा सन्या लक्षण व प्रयोजन की अपेक्षा भिन्न है। जैसे कि गुण की सज्ञा या नाम कुछ और है और द्रव्य की कुछ और, एक द्रव्य मे रहने वाले गुण व पर्याय की सख्या अनेक है ओर द्रव्य की एक ; द्रव्य का लक्षण कुछ और है और पर्याय का लक्षण कुछ और; द्रव्य का प्रयोजन त्रिकाली एक रस रूप सत्ता है, और गुण व पर्याय का प्रयोजन खडित क क्षणिक सत्ता है । सर्वथा भिन्न न हुए होते तो भेद डाला जाना भी अशक्य था । परन्तु सज्ञादि चार अपेक्षाओं से भिन्नता होने के कारण उनमे कथञ्चित भेद का ग्रहण किया जा सकता है ।