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१८ निश्चय नय
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२ अध्यात्म नयो
के भेद प्रभेद निश्चय व व्यवहार कोई स्वतत्र नये नही है । पूर्वोक्त आगम पद्धति की सग्रह नय का नाम ही यहा निश्चय नय है और वहा वाली व्यवहार नय का नाम ही यहा व्यवहार नय है । अपने गुण पर्यायो से तन्मय अखण्ड वस्तु के अद्वैत भाव को विषय करने के कारण निश्चय नय की विचारणा निर्विकल्प है अर्थात् उस विचारण के अतिरिक्त अन्य विकल्प को वहा अवकाश नही । अखण्डित एक वस्तु को खण्डित करके अनेको भेदो रूप चित्र विचित्र द्वैत भावों को विषय करने के कारण व्यवहार नय की विचारणा सविकल्प व चचल है । अर्थात उस नय सम्बन्धी विचारणा के अतिरिक्त वहा अच्छे बुरे या मेरे तेरे की कल्पनाओं का प्रवेश स्वत हो जाता है । इसलिये अध्यात्म पद्धति में निश्चय नय राग प्रशामक और व्यवहार नय राग प्रवर्धक माने गए है । इन अगो को किस प्रकार जीवन मे अपनाया जाये यह तो इस ग्रन्थ का विपय नहीं है । हां उन अगो का विषय परिचय देने के लिये, प्रत्येक अग के कितने भेद प्रभेद किये जा सकते है और प्रत्येक भेद मे एक दूसरे की अपेक्षा कितना हीन या अधिक हेय व उपादेय पना है, यही बताना यहा अभीष्ट है।
आगम-पद्धति की भाति यहा भी प्रत्येक नय का स्वरूप समझकर अन्त में उसका कारण व प्रयोजन अवश्य बताया जायेगा. जो विशेष ध्यान देने योग्य है । क्योकि कारणव प्रयोजन पर ध्यान दिये बिना वह हेयोपादेयता का विवेक होना असम्भव है । अतः अध्यात्म नयो का मुख्य अर्थ उस कारण व प्रयोजन मे ही छिपा है । उस पर ध्यान न देने के कारण ही यह विषय केवल चर्चा तक ही समाप्त हो कर रह गया है, जीवनोपयोगी बन नहीं पाया है। अब इन अध्यात्म नयों को पड़ कर जीवन मे सरलता व साम्यता जागृत करे ऐसी भावना है।
आगम पद्धति की भांति यहाँ भी 'नय' प्रमाण के अंग का नाम है। २ अध्यात्म नयो प्रमाण ज्ञान पूर्ण वस्तु के चित्रण का नाम है। के भेद प्रभेद इस चित्रण को यहा भी दो भागों में विभाजित