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१७ पर्यायार्थिक नय
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५. पर्यायार्थिक नय
समन्वय
प्रकार स्वभाव की सफलता मे निमित्त का और निमित्त की सफलता मे स्वभाव को वह कोई मूल्य नही गिनता । कारण कि जिस अंग को वह वर्तमान मे कह रहा है, उसके ज्ञान मे उतना ही स्वीकार है, इसके अतिरिक्त अन्य अगों का नहीं।
अतः भाई ! ज्ञान को व्यापक बना कर सर्व ही अगी या वस्तु के विशेपों को यथा योग्य रूप में जान कर, उस वस्तु का एक अखण्ड चित्रण ज्ञान पट पर बनाने का प्रयत्न कर, जिसके होने पर कि तू प्रत्येक बात का ठीक ठीक रहस्य समझने व समझाने में सफल हो सके । यही है अनेकान्त वाद का महात्म्य ।