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१७ पर्यायार्थिक नय
५७४ ४ पर्यायार्थिक नय
विशेष के लक्षण इसी लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ अव आगम कथित उद्धरण देखिये।
१ वृन च ।२०५ 'भगत्यशुद्धाश्चतुर्गतिजीवाना पर्यायान्यो
हि । भवति विभावानित्योऽशुद्धः पर्यायाथिक नय ।२०५।"
अर्थ -- चतुर्गति के जीवो की अशुद्ध देव नारक आदि या
अन्य स्थूल व्यञ्जन पर्यायो को ग्रहण करने वाले नय को विभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायाथिक नय कहते है ।
२ आ.५।८।पृ ७५ "कर्मोपाविसापेक्षस्वभावोऽनित्याशुद्धपर्याया
थिको यथा ससारिणामुत्पत्ति मरणेस्तः।"
अर्थ--कर्मोपाधि सापेक्ष स्वभाव अर्थात विभाव अनित्य अशुद्ध
पर्यायाथिक नय ससारी जीवो के जन्म मरण से प्रकट होने वाली पर्यायो को अर्थात स्थूल व्यञ्जन पर्यायो को ग्रहण करता है।
३ नय चक्र गद्य। प ६ “विभावो ऽनित्याशुद्धोन्यः पर्यायार्थो गदेत्पर
देवादीना च पर्यायमनित्याशुद्धक यथा ।६।"
अर्थ- विभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय उस शुध्द
पर्यायार्थिक से अन्य है। देवादिकों की पर्याय अनित्य व अश ध्द है ऐसा यह नय बताता है ।
स्वभाव से विपरीत होने के कारण अर्थात ससारियो के या पुद्गल स्कन्धो के औदयिक भाव रूप होने के कारण विभाव है। सादि सान्त होने के कारण अथवा पर्याय होने के कारण अनित्य है।