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१७ पर्यायार्थिक नय
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४. पर्यायार्थिक नय
विशेष के लक्षण रखता इसलिए स्वभाव है । अतः स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायाथिक नय ऐसा नाम सार्थक है । यह इसका कारण है । प्रत्येक पयाय का जुदा भी सत् देखा जा सकता है, यह बताना इसका प्रयोजन है ।
स्वभाव अनित्य शुद्ध व स्वभाव अनित्य अशुद्ध में क्या अंतर है यह आगे शंका समाधान में बताया जाएगा।
५. विभाव अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नयः--
विभाव भी और शुद्ध भी, इन दोनों का मेल कैसा ? विभाव तो सर्वथा अशुद्ध ही होता है ? ऐसा नही है भाई ! दृष्टि की विचित्रता है । विभाव में मे भी कथञ्चित शुद्धता देखी जा सकती है। यद्यपि रसात्मक भाव को ग्रहण करने पर तो वह अशुद्ध ही प्रतीत होगी परन्तु पर्याय का सामान्य एक अनित्य स्वभाव ग्रहण करने पर उसमे शुद्ध व अशुद्ध के विशेपण की कोई आवश्यकता नही रह जाती। शुद्ध शब्द का दो अर्थों मे प्रयोग होता है-अशुद्धता को टालकर शुद्धता का व्यक्त होना पहिली शुद्धता है, और वस्तु का सामान्य स्वभाव शुद्ध व अशुद्ध दोनो से निरपेक्ष दूसरी शुद्धता है। सो यहां पहिली शुद्धता से नही बल्कि दूसरी से प्रयोजन है । सो कैसे वही दर्शाता हू ।
पर्याय शुद्ध हो या अशुद्ध, क्षायिक हो या औदयिक है तो पर्याय ही, है तो क्षणिक ही, है तो उत्पाद व्यय स्वरूप ही । पर्याय का पर्यायपना किसमें कम है और किसमें अधिक ? पर्याय तो उत्पन्न ध्वन्सी भाव को कहते है । सो हर पर्याय ही उत्पन्न ध्वंसी है । अतः पर्याय के इस उत्पन्न ध्वसी सामान्य स्वभाव की अपेक्षा क्षायिक व
औदयिक दोनों ही पर्याये समान हैं, शुद्ध व अशुध्दता की कल्पना से निरपेक्ष शुध्द है।