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१७. पर्यायार्थिक नय ५६६
४. पर्यायार्थिक नय
विशेष के लक्षण नय का स्वभाव अनित्य शुद्ध पायर्यायार्थिक' ऐसा नाम सार्थक है । यह इस नय का कारण है । और वस्तु के सहज त्रिकाली परिणाम स्वभाव का परिचय देना इसका प्रयोजन है।
४. स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय:
स्वभाव अनित्य शुद्ध पर्यायाथिक वत् ही इसका लक्षण समझना । दोनो मे सूक्ष्म सा ही अन्तर है । जिस प्रकार स्वभाव अनित्य शुद्ध नय वस्तु के सहज अनित्य स्वभाव को बताता है उसी प्रकार स्वभाव अनित्य अशुद्ध नय किसी भी एक पृथक पर्याय को अनित्य दर्शाता है । 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत्', सत् का लक्षण ही उत्पादव्यय ध्रुव रूप है, फिर चाहे वह सत् निकाली हो या क्षणिक । जिस प्रकार वस्तु का त्रिकाली सत् प्रतिक्षण एक पर्याय से उत्पन्न होता है, पूर्व पर्याय से विनाश पाता है, और 'उत्पत्ति व विनाश पाने वाला यही वह है' ऐसी एक अनुस्यूति रूप द्रव्य की प्रतीति से ध्रुव रहता है, उसी प्रकार एक पर्याय का क्षणिक सत् भी उस पर्याय रूप से उत्पन्न होता हुआ, एक क्षण पश्चात् उसी पर्याय रूप से विनष्ट होता हुआ और एक क्षण के लिये उसी पर्याय रूप से ध्रुव टिका रहता हुआ दिखाई देता है । अत द्रव्य व पर्याय दोनो ही सत् है, दोनो के सत् मे एक ही लक्षण घटित होता है ।
द्रव्य का सत् तो सम्पूर्ण पर्यायो मे अनुस्यूत रहने के कारण शुद्ध कहा जाता है परन्तु पर्याय का एक क्षण मात्र को ही दर्शन देकर विलुप्त हो जाने के कारण अशुद्ध कहा जाता है। जिस प्रकार त्रिकाली सत् द्रव्य का स्वभाव है उसी प्रकार क्षणिक सत् पर्याय का स्वभाव है । यह क्षणिक सत्' ही इस नय का विषय है अर्थात एक पृथक पर्याय मे उत्पादव्यय और ध्रुव ये तीनो दर्शाना ही स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायाथिक नय का लक्षण है। इसी का दूसरा नाम