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१७ पर्यायार्थिक नय
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४. पर्यायार्थिक नय
विशेप के लक्षण
जो कि क्षण क्षण प्रति हमारे ज्ञान में वृद्धि रूप से हई है । १०० डिग्री से बुखार १०२ डिग्री पर पहुचा । यह २ डिग्री की वृद्धि क्या एक वृद्धि है या अनेको क्षणिक वृद्धियों का समूह । विचार करने से पता चलेगा कि बुखार की वृद्धि यह नहीं है बल्कि वह है जो कि प्रत्येक क्षण थोडी थोडी उत्पन्न हुई है सो इस क्षणिक हानि या वृद्धि को तो उस उस गुण की अर्थ पर्याय कहते है, और इन के सामूहिक व चिर काल पीछे बीतने वाले रूप को व्यज्जन पर्याय कहते है । अर्थ पर्याय को आगम भाषा मे षट् गुण हानि वृद्धि रूप कहा है, जिस का अर्थ पर्याय से प्रगट उस गुण के शक्ति अशो मे प्रत्येक क्षण होने वाली हानि वृद्धि के अतिरिक्त कुछ नही ।
उपरोक्त वक्तव्य पर से सिद्ध हुआ कि पर्याय तो वास्तव मे क्षण स्थायी है, पर इन का समूह चिर काल स्थायी सा हमारी स्थूल दृष्टि मे देखने में आता है । अर्थ पर्याय को पकडने की शक्ति हम मे नही । यदि इन अर्थ पर्यायो मे होने वाली सूक्ष्म वृद्धि या हानि इस प्रकार होती रहे, कि कभी तो हानी हो जाये और कभी लग भग उतनी ही वृद्धि हो जाये तो उन का सामूहिक रूप ज्यो का त्यो ही तो रहेगा। भले प्रत्येक क्षण हानि वृद्धि हुई हो पर सामूहिक रूप मे से कोई स्थूल हानि वृद्धि देखने में न आ सकेगी। जैसे कि यदि १००० मे से ५० घटा दे, फिर ५५ बढ़ा दे, फिर ५२ घटा दे, फिर ४७ बढा दे तो शेष क्या रहेगा ? ज्यों के त्यो हजार । क्या हानि वृद्धि नही हुई ? क्षणिक हानि वृद्धि अवश्य हुई पर इस प्रकार, कि हानि-वृद्धि के बराबर रही, और इसी लिये सर्व हानि वृद्धि होते हुए भी चिर काल पश्चात दिखने वाली उन का सामूहिक फल ज्यो का त्यो बना रहा । इस प्रकार की स्थूल व्यज्जन पर्याय को सदृश्य व्यज्जन पर्याय कहते है।
बहुत से पदार्थो मे ऐसी सदृश्य व्यज्जन पर्याये सर्वदा देखने को मिलती है । अर्थात बहुत से पदार्थ लोक मे ऐसे है जो स्थूलतः बदलते