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१७. पर्यायार्थिक नय
४. पर्यायार्थिक नय
विशेप के लक्षण जसा कि ऊपर चार्ट में भी दिखा दिया गया है-ये छहों उपरोक्त भेदो मे गर्भित हो जाती है । न. १ वाली अनादि नित्य शद्ध तो उपरोक्त अनादि अनन्त मे समा जाती है और न २ वाली सादि नित्य श द उपरोक्त सादि अनन्त मे । नं. ३ वाली स्वभाव अनित्य शुद्ध कोई पर्याय विशेष नही है बल्कि पर्याय उत्पन्न होने का एक त्रिकाली स्वभाव है अत. उसका इन भेदों में कोई स्थान नही । न. ४ वाली स्वभाव अनित्य अशुद्ध उपरोक्त एक समय स्थायी सादि सान्त मे चली जाती है । न ५ वाली विभाव अनित्य शुद्ध ससारियो की एक समय स्थायी सादि सान्त मे गर्भित हो जाती है और नं ६ वाली विभाव अनित्य अशुध्द औदयिक भाव रूप चिर स्थायी सादि सान्त मे समा जाती है । अत आगम कथित यह भेद पदार्थ मे दीखने वाली पर्यायों से निरपेक्ष कोई स्वतत्र सत्ता नही रखते ।
अव इन के पृथक पृथक लक्षण आदि दर्शाने मे आते है।
१ अनादि नित्य (शुद्ध) पर्यायार्थिक नय -
यद्यपि वस्तु की सर्व पर्याय सूक्ष्म दृष्टि से सादि सान्त ही होती है, ४. पर्यायार्थिक नय परन्तु जिस प्रकार अर्थ पर्याय की अपेक्षा विशेष के लक्षणादि व्यज्जन पर्याय अधिक काल तक रहती प्रतीति मे आती है, उसी प्रकार वस्तु की कुछ व्यज्जन पर्याये ऐसी भी है जो अनादि नित्य रूप से जानने मे आती है । जैसा कि पहिले बताया जा चुका है, व्यज्जन पर्याय वास्तव मे कोई स्वतत्र पर्याय नही बल्कि अनन्तो अर्थ पर्यायो का सामूहिक फल है । जैसे कि हमारे ज्ञान की वृद्धि जो एक वर्ष पश्चात हमारी दृष्टि मे आई है वह वृद्धि कोई एक पर्याय नहीं है बल्कि प्रत्येक क्षण होने वाली वृद्धियो का एक सामूहिक रूप है । इस दृष्टान्त मे वस्तुभूत पर्याय या परिणमन तो वही है