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१७ पर्यायार्थिक नय
३ पर्यायार्थिक नय के
भेद प्रभेद देखी जा सकती, क्योकि कोई परमाणु अल्पकाल मात्र रह कर पुन. वन्ध जाता है ।
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अधिक काल स्थायी सादि सान्त पर्याय भी दो प्रकार की है-एक पूर्ण अशुद्ध औदयिक भाव रूप और एक शुद्धाशुद्ध क्षायोपशमिक भाव रूप ओपशमिक रूप से शुद्धता को प्राप्त होकर पुन. औदयिक भाव मे प्रवेश करके इसका प्रारम्भ करता है, और फिर बड़े लम्वे काल पश्चात अर्थात कई भवो पश्चात पुन औपशमिक भाव को प्राप्त होकर उसका अन्त करता है। एक तो ऐसा औपशमिक भाव के साथ लगा हुआ औदयिक भाव सादि सान्त है । दूसरा क्षायोपशमिक भाव से भी च्युत होकर औदयिक भाव में प्रवेश पाता हुआ उसका प्रारम्भ करता है, और यथा योग्य हीनाधिक समय तक वहा रह कर पुन. क्षायोपशमिक भाव में प्रवेश पाता हुआ उसका अन्त करता है । इस प्रकार दूसरा क्षायोपशमिक के साथ लगा हुआ औदयिक भाव है । तथा स्वप क्षायोपशमिक भाव भी क्योकि औदयिक का अन्त करके क्षायोपशमिक और क्षायोपशमिक का अन्त करके औदयिक वरावर कुछ कुछ काल पश्चात उदय होते रहा करते है। इनके काल का कोई नियम नही। दोनो ही के सम्बन्ध मे अनेक विकल्प हो सकते है। दो चार क्षण रह कर समाप्त हो जाये, कुछ मिनिट, कुछ घन्टे, कुछ दिन, महिने या वर्प रह कर समाप्त हो जाय अथवा कुछ भव तक वरावर वना रह कर समाप्त हो जाये। इस प्रकार सादि सान्त पर्याय औपगमिक भाव, क्षायोपशमिक भाव, और औदयिक भाव तीन रूप है। इनका काल यथा योग्य रोति से स्वयं जान लेना। ये सर्व विकल्प पुद्गलात्मक जड़ पदार्थ मे भी यथा योग्य रूप से देखे जा सकते है, क्योकि वहा वरावर परमाणु से स्कन्ध और स्कन्ध से परमाणु बनते रहते है।
औपशमिक भाव तो सादि सान्त शुद्ध भाव है, क्षायोपशमिक भाव सादि सान्त शद्धाशद्ध भाव है और औदयिक भाव सादि सान्त अशुद्ध भाव है।