________________
१७
पर्यायार्थिक नय
इसका व्यापक लक्षण है । जैसे कि वर्तमान काल वर्ती कोई आदि मध्य अन्तरहित एक प्रदेशी स्वलक्षण भाव स्वरूप परमाणु ही एक सत् है, यह दीखने वाले लम्बे काल स्थायी अनेक प्रदेशी अनेक भाव स्वरूप स्थूल पदार्थं वास्तव में एक नही अनेक है । इसी लक्षण में इस के सर्व अन्य लक्षण गर्भित है । केवल स्पष्टीकरण करने के अर्थ ही अनेक लक्षण किये गये है । विशेष का नाम पर्याय है । यद्यपि पर्याय शब्द द्रव्य के कालॉश अर्थात परिवर्तन पाने वाली अवस्थाओं या अशोका नाम प्रसिद्ध है, परन्तु वास्तव मे ऐसा नही है । पर्याय शब्द का साधारण अर्थ है अश या विशेष, वह द्रव्य की अतेक्षा हो या क्षेत्र की अपेक्षा हो या काल की अपेक्षा हो या भाव की अपेक्षा हो ऐसा चतुष्टयात्मक विशेष या पर्याय ही है प्रयोजन जिसका वह पर्यायार्थिक नय है । फिर भी कथन को सरल बनाने के लिये पर्यायार्थिक का कथन कालांश रूप पर्यांय मुखेन ही करने मे आता है । तहा गेप बचे द्रव्याश क्षेत्राश व भावाश को स्वय लागू कर लेना चाहिये ।
१ पर्यायार्थिक नय
सामान्य का लक्षण
५४४
-
२ लक्षण नं २ उपरोक्त प्रकार चतुष्टय विशेष की ही स्वतंत्रता को ग्रहण करने के कारण इसकी दृष्टि में कोई एक द्रव्य - एक ही प्रदेश तथा एक ही समय व एक ही भाव की सत्ता वाला होना चाहिये । यहा द्वित्व को अवकाश नही | आगे पीछे की पर्यायो मे परस्पर कोई सम्वन्ध स्थापित नही किया जा सकता । उसे पर्याय या विशेष क्यो कहते हो, वह तो एक स्वतंत्र सत् है । विशेष या पर्याय नाम उसी समय धरा जा सकता है जब कि अनेको मे अनुस्यूत कोई एक सामान्य दृष्टि मे आ रहा हो । सामान्य के अभाव मे विशेष किसे कहे ? अत . जिसे हम पर्याय कहते है वही तो सत् या द्रव्य है । पूर्व समय की पर्याय पूर्व समय का द्रव्य था जो विनष्ट हो चुका है। उस का सम्वन्ध इस वर्तमान के द्रव्य से क्या है ? इसी प्रकार भविष्य का द्रव्य कुछ अन्य ही होगा । कुत्ते मनुष्य व देव इन तीन पर्यायो में अनुगत कोई एक जीव सामान्य नाम का द्रव्य लोक मे नही है । कुत्ता