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१६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य
१४. परम भाव ग्राहकशुद्ध
द्रव्यार्थिक नय एकान्त नित्यवाद के छेदनार्थ ही यह नय है । यह इसका प्रयोजन जानना।
द्रव्याथिक नय दशक में अब तक तीन युगलो का कथन हो १४ परम भाव ग्राहक चुका । प्रथम युगल मे वस्तु के सामान्य
शुद्ध द्रव्याथिक नय स्वचतुष्टय के आधार पर उसका स्वरूप दर्शाया गया। दूसरे युगल मे उस चतुष्टय के प्रथम व द्वितीय अग जो 'द्रव्य' व 'क्षेत्र' उनके आश्रय पर गुण-गुणी आदि मे अभेद व भेद दर्शाकर उसका परिचय दिया गया। तीसरे युगल मे उस चतुष्टय का तीसरा अंग जो 'काल' उसके आश्रय पर उसके उत्पाद व्यय व ध्रौव्यता का प्रतिपादन किया गया । अब उस चतुष्टय का चतुर्थ अग जो 'भाव' उसके आश्रय पर उसका परिचय देना प्राप्त है ।
भाव शब्द अनेको अर्थों में प्रयुक्त होता है । त्रिकाली शुद्ध व निर्विकल्प पारिणामिक भाव भी है, और क्षायिक औदयिक आदि क्षणिक शुद्ध व अशुद्ध भाव भी भाव है । अपनी त्रिकाली पर्यायो में अनुगत गुण भी भाव है तथा उसकी सूक्ष्म व स्थूल अर्थ व व्यञ्जन पर्याये भी भाव है । रागादि विभाव भाव भी भाव है और बीतरागता आदि स्वभाव भाव भी भाव है । वस्तु के उत्पादक व्यय ध्रुवत्व भी उसके भाव है और द्रव्य क्षेत्र काल भाव रूप स्वचतुष्टय भी उसके भाव है---इत्यादि । वस्तु के इन सर्व भावात्मक भेदो के साथ वस्तु के स्वभाव का व्यतिरेक व अन्वय दर्शाना इस नय युगल का काम है । अर्थात उपरोक्त द्वन्दात्मक अनेक गुण पर्यायो आदि रूप भावो से व्यावृत कोई एक निर्द्वन्द विविक्त भाव पर से वस्तु के स्वभाव का परिचय देना परम भाव का काम है, और वस्तु के स्वचतुष्टय भूत अनेक विशेषो के साथ उस व्यावृत भाव का तथा उसके सामान्य चतुष्टय का अनुगताकार दर्शाकर, सर्व ही विशेष भावों मे सामान्य भाव को ओत पोत रूप से दिखाना, इस युगल के दूसरे भेद 'अन्वय ग्राहक' का काम है।