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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५०६
११. भेद सापेक्ष
अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय और इस प्रकार आ जाते है मानो ऊष्णता मे प्रकाश और प्रकाश में अग्नि ओत प्रोत ही पडे है । वैसे ही 'आत्मा' आदि कहने पर भी उसका एक रसात्मक अभेद व सामान्य स्वरूप ग्रहण कराना इस नय का प्रयोजन है । अर्थात द्रव्य को गुण पर्याय मई दिखाना इस नय' का प्रयोजन है। या यों कह लीजिये कि भेदो मे अभेद दशना इस का प्रयोजन है ।
भेद निरपेक्ष द्रव्यार्थिक नय के द्वारा वस्तु को गुणो आदि की ११ भेट सापेक्ष कल्पना से निरपेक्ष सर्वथा एक व अखण्ड अशुद्ध द्रव्यार्थिक सामान्य तत्वके रूप मे दर्शाया गया। यहा यह
नय प्रश्न होता है कि क्या वस्तु निर्गुण है ? अर्थात क्या वह गुणो व पर्यायो से शून्य है ? यदि ऐसी है तो वह आकाश पुष्पवत् असत् है, क्योकि गुणों से शून्य किसी भी द्रव्य की सत्ता लोक मे दिखाई नहीं देती। यदि द्रव्य मे से गुण पृथक कर लिये जाये तो आप ही बताइये कि क्या शेष रह जायेगा । जैसे कि यदि अग्नि में से ऊष्णता व प्रकाश निकाल लिये जाये तो क्या वह अग्नि अपना कोई अस्तित्व रख सकेगी ? अतः सिद्ध हुआ कि गुण व पर्याय मई ही वस्तु है, इन से पृथक कुछ नही । विशेषों से रहित सामान्य कुछ चीज नही । इसलिये केवल निर्विकल्प सामान्य मात्र तत्व को जानना न जानने के बराबर है। ___भेद निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक का विषय उस समय तक अधूरा ही है, जब तक कि गुण व पर्यायों आदि के भेद उसमे प्रतिष्ठत हो नही जाते। यद्यपि द्रव्य गुण व पर्याय मे किसी भी प्रकार का प्रदेश भेद नहीं है, परन्तु उन में स्वरूप भेद अवश्य है। जो द्रव्य है व गुण नही
और जो गुण है वह पर्याय नही, क्योंकि इनके पृथक पृथक स्वभावकी प्रतीति होती है । जैसे कि जो अग्नि है वही व उतनी ही ऊष्णता नहीं है । ऊष्णता अग्नि का एक स्वभाव अवश्य है पर पूर्ण स्वभाव नही। यही द्रव्य व गुण आदि में स्वभाव भेद है।