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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य
१० भेद निरपेक्ष
शुद्ध द्रव्यार्थिक नय व प्रकाश से पृथक कोई सत्ता है ? सब एक मेक है कथन मे ही केवल भेद है, अग्नि मे तो ऐसा कोई भेद है नही । अतः अग्नि को उष्णता आदि के भेद से निरपेक्ष केवल अग्नि ही कहना उचित है।
अब इसी की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धरण देखिये ।
वृ. न. च ।१९३ "गुणगुण्यादिचतुष्कऽर्थे यो न करोति खलु भेदं ।
शुद्ध- स द्रव्यार्थिकः भेदविकल्पेन निरपेक्षः ।१९३।"
अर्थ --- गुण-गुणी व पर्याय पर्यायी इस प्रकार चार भेद रूप
पदार्थ मे जो भेद नही करता है, वह भेद विकल्पो से निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहलाता है ।
२ आ. ५।७।१७० भेदकल्पनानिरपेक्षः शुद्धो द्रव्याथिको यथा निज
गुण पर्याय स्वभावाद् द्रव्यमभिन्नम् ।”
अर्थ- भेद कल्पना निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कों ऐसा
जानो जैसे कि निज गुण पर्याय वाले स्वभाव से द्रव्य अभिन्न है।
गुण-गुणी आदि भेद का निरास करने के कारण भेद निरपेक्ष । है । भेद रहित होने के कारण ही शुद्ध है, और वस्तु का केवल सामा
न्य अभेद अग देखा जाने के कारण द्रव्यार्थिक है। इस प्रकार 'भेद निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय' ऐसा इसका नाम सार्थक है। यह इस नयका कारण है।
भेदो के कथन पर से अभेद को समझना ही वास्तव मे' समझना । कहलाता है, भेदो में अटक कर उनकी बाते तो करना और अभेद भाव को स्पर्शन करना समझना नही है। जैसे अग्नि कहने पर उसकी ऊष्णता, प्रकाशत्व आदि सब कुछ स्वतः दृष्टि मे आ जाते हैं,