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३ वस्तु व ज्ञान सम्बन्ध
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१. अल्पज्ञता की बाधकता पक्षपात व एकान्त
सम्बन्ध मे देखने को मिलता है, जिनका आज तक स्पर्श हो नही पाया है । लौकिक प्रत्यक्ष विषयों के सम्बन्ध में किसी के अन्दर भी कोई पक्षपात देखने मे नही आता । उन विषयो के सम्बन्ध मे मे तो में जो कुछ भी, जिस किसी भी अभिप्राय से कहू, तो आप सव क्या एक बालक भी, वह कुछ ही उस ही अभिप्राय से कहा गया समझ लेता है, विरोध नही करता । उनके सम्बन्ध मे तो, मे आपके लक्ष्य को जिस ओर भी खेचना चाहूँ सहज खिचा जाता है पर अदृष्ट विषयो के सम्बन्ध में ऐसा नही हो रहा है । वहा अवश्य कुछ खेचातानी प्रारम्भ हो जाती है ।
जैसे कि 'अग्नि' शब्द कहने पर आप सब अग्नि को यथा स्थिर रूप में जान जाते है, एक शब्द का सकेत ही आपके लक्ष्य को यथास्थान पहुचा देने के लिये पर्याप्त है, पर 'आत्मा' शब्द कहने पर आप बजाये आत्मा नाम का पदार्थ पढने के आत्मा नाम का शब्द पढने मे, तथा इस सम्बन्धी उन बातों को पढने में अटक जाते है, जो कि आपने आज तक उसके सम्बन्ध मे पढ कर या सुनकर सीखी है । और क्योकि वे अधुरी है इसलिये आप तत्सम्बन्धी उन बातो को सुनकर तो प्रसन्न होते है जो कि आप जानते है, पर कोई उसके संबंध की नई बात या आपकी धारणा से विरोधी या विपरीत बात आपको क्षोभ उत्पन्न कराये बिना नही रहती । कारण है आपकी अल्पज्ञता । क्योकि यद्यपि आत्मा नाम पदार्थ मे वह विरोधी बात भी पडी है, पर उसे स्वीकारे कैसे, जबकि आज तक आपने वह पढी ही नही । वह तो आपको ऐसी ही प्रतीत होने लगती है मानो यह बात आपकी धारणा का निराकरण करने के लिये ही मैं कह रहा हूँ । यदि कदाचित आत्मा पदार्थ का भी अग्निवत साक्षात्कार कर लिया होता तो ऐसा होने न पाता, और क्योकि यह पक्षपात जीवन मे कुछ क्षोभसा उत्पन्न करता है इसलिये यह जीवन का भार है अज्ञान है । इसे दूर करना ही प्रयोजनीय है ।
पहिली जानी हुई बात के अतिरिक्त अन्य बात जानने के निषेध की जो यह भावना अन्दर मे देखी जाती है, इसका नाम ही ज्ञान
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