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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६६
७. द्रव्यार्थिक नय
दशक परिचय भेद है-जीव व अजीव । जीव के भी दो भेद है-मुक्त व ससारी। यद्यपि ये दोनों कोई स्वतंत्र त्रिकाली द्रव्य नही है, बल्कि एक सामान्य जीव द्रव्य की दो पर्याये है, और इसलिये इन्हे पर्यायार्थिक नय का विषय बनना चाहिये, परन्तु स्थूल दृष्टि से देखने पर जन्म से मरण पर्यन्त की यह कोई एक पर्याय नही है बल्कि मनुष्यादि अनेक पर्यायों मे अनुमत सामान्य भाव है । अतः इन दोनों को द्रव्य रूप से संग्रह नय ग्रहण कर लेता है । ये दोनो जीव द्रव्य की अवान्तर सत्ताये है । इनमे से मुक्त जीव कर्मोपाधि रहित होने के कारण शुद्ध है। और संसारी जीव कर्मोपाधिसहित होने के कारण अशुद्ध है। मुक्त जीव की इस शुद्धता को दर्शाना कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक का काम है और ससारी जीव की अशुद्धता को दर्शाना कर्मोपाधि साक्षेप अशुद्ध द्रव्यार्थिक का काम है।
इस प्रकार सामान्य वस्तु मे तो अभेद व भेद दर्शाने की अपेक्षा और विशेष वस्तु मे पर की उपधि कृत अशुद्धता व शुद्धता दर्शाने की अपेक्षा, इन पाचों ही युगलो मे पहिला पहिला तो शुद्ध द्रव्यार्थिनय कहलाता है, और दूसरा दूसरा अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहलाता है । इस प्रकार ये दशो भेद शृद्ध व अशुद्ध द्रब्यार्थिक के ही उत्तर भेद समझने चाहिये । स्व चतुष्टय ग्राहक नय शुद्ध द्रव्यार्थिक है और पर चतुष्टय ग्राहक अशुद्ध द्रव्यार्थिक । गुण गुणी आदि भेद निरपेक्ष द्रव्य ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक है और भेद सापेक्ष द्रव्य ग्राहक अशुद्ध, द्रव्यार्थिक । उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक है। और उत्पाद व्यय सापेक्ष सत्ता ग्राहक अशुद्ध द्रव्यार्थिक । परम भाव ग्राहक नय शुद्ध द्रव्यार्थिक है और अन्वय ग्राहक अशुद्ध द्रव्यार्थिक । कर्मोपाधि निरपेक्ष क्षायिक भाव ग्राही शुद्ध शुद्ध द्रव्यार्थिक है और कर्मोपाधि सापेक्ष औदयिक भाव ग्राही अशुद्ध द्रव्यार्थिक । इस प्रकार नय दशक का सक्षिप्त परिचय दिया गया । अब इनका पृथक पृथक विस्तार देखिये।