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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४३ ६. अशुद्ध द्रव्यार्थिक
नय पर्यायार्थिक नय की भांति उन विशेषों की पृथक सत्ता दर्शाने के लिये नही, इसलिये भेद ग्राहक होते हुए भी इसकी द्रव्याथिकता विनष्ट नही होती।
इस नय के निम्न दो प्रमुख लक्षण किये जा सकते है ।
१. द्रव्य क्षेत्र काल व भाव रूप चतुष्टय की अपेक्षा द्रव्य
अनेक भेदों वाला एक सामान्य तत्व है।
२. अनेक भिन्न द्रव्यो मे सयोग अथवा निमित्त नैमित्तिक
सम्बन्ध कार्यकारी है।
अब इन्ही लक्षणों की पुष्टि व अभ्यास के लिये कुछ उद्धरण
देखिये ।
१ लक्षण नं० (चतुष्टम की अपेक्षा अनेक भेदों से संयुक्त द्रव्य)
आ प ।१७।पृ १२१ “अशुद्धद्रव्यमेवार्थ. प्रयोजनमस्येति अशुद्ध
द्रव्यार्थिक.।"
अर्थ-अशुद्ध द्रव्य ही है अर्थ या प्रयोजन जिसका वह अशुद्ध
द्रव्यार्थिक नय है। (यहा अशुद्धता से तात्पर्य भेद ग्रहण करना)
२. वृ. . स ४८।२०६ “अशुद्धनिश्चयः शुद्धनिश्चयापेक्षया
व्यवहार एवं ।" अर्थ --अशुद्ध निश्चय नय को यदि शुद्धनिश्चय की अपेक्षा देखा
जाये तो वह व्यवहार नय ही है। (कारण कि शुद्ध नय का विषय अभेद है और इसका विषय भेद । शास्त्रीय व अध्यात्मिक व्यवहार नय का विषय भी भेद है । अतः दोनों में समानता है।)