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१६. द्रवयार्थिक नय सामान्य ४८४
५ शुध्द द्रव्यार्थिक
नय ५ लक्षण नं. ५ (त्रिकाली शुद्ध परिणामिक भावस्वरूप ही
द्रव्य है) १ स. सा।म्. १४ “जो पस्सदि अप्पाण' अबद्धपुट्ठ अणण्णय
णियद । अविसेसमसजुत्त त सुद्धणय वियाणाहि ।१४।" अर्थ - जो आत्माको बन्ध रहित और परके स्पर्शके रहित,
अन्यत्व रहित, चलाचलता रहित, विशेप रहित, अन्यके सयोग रहित, ऐसे पाच भाव रूप (केवल त्रिकाली शुद्ध परिणामिक भाव स्वरूप) अवलोकन करता है, उसे शुद्ध नय जानो ।
२. मि सा. ।ता वृ। ४२ " इह हि शुद्धनिश्चयनयेन शुद्धजीवस्य
__ समस्तससारविकरसमुदायो न शमस्तीत्युक्तम् ।" अर्थ- शुद्ध निश्चय नय से शुद्ध जीव को समस्त ससार विका
रोका समुदाय नही है, ऐसा यहां कहा है ।
(नि. सा. ता वृ४७)
३. वृ 5. स।४८।२०६ "साक्षाच्छद्धनिश्चयनयनय स्त्रीपुरुषस
योगरहित पुत्रस्येव, तेषामुत्पत्तिखे नास्ति ।"
अर्थ- साक्षात शुद्ध निश्चय नयकी अपेक्षासे, जैसे स्त्री और
पुरुषके सयोग के बिना पुत्र की उत्पत्ति नही होती, इसी प्रकार जीव तथा कर्म इन दोनो के सयोग के बिना रागद्वेषादि की उत्पत्ति ही नही होती। (अर्थात जब शुद्ध निश्चयके विषयभूत पारिणामिक भाव मे कर्म सयोगादि की अपेक्षा ही नही है, तब वहां रागदि कैसे सम्भव हो सकते है।)