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________________ १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४७८ ५. शुध्म द्रव्यार्थिक नय ही है । इस प्रकार एक अखण्ड नित्य स्वलक्षण स्वरूप अद्वैत तत्व विशष निरपेक्ष सामान्य द्रव्य है। ऐसा एक अखण्ड सामान्य द्रव्य है प्रयोजन जिसका वह गुद्ध द्रव्याथिक नय है। शास्त्रीय नय सप्तक मे यह सग्रह नय मे गर्भित होता है। अन्य प्रकार स भी शुद्ध तत्व को पढा जा सकता है, और वह प्रकार है, उसको पारिणामिक भाव की और से पढ़ने का । पारिणामिक भाव जैसा कि पहिले भली भाति समझाया जा चुका है त्रिकाली शुद्ध ही होता है । उत्पाद व व्यय आदि अपेक्षाओ से सर्वथा रहित उसमें शुद्ध या अशुद्ध पर्याय की कल्पना मात्र को भी अवकाश नही है । क्षायिक भाव की अशुद्धता और इसकी शुद्धता मे अन्तर है, क्योकि क्षायिक भावि की शुद्धता तो अशुद्धता को दूर करके प्रगट होती है, परन्तु इसकी शुद्धता, अशुद्धता से सर्वथा निरपेक्षा त्रिकाली है। ऐसे शुद्ध परिणामिक भाव स्वरूप ही द्रव्य की सत्ता को स्वीकार करना भी शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। वास्तव मे शुद्ध नय के सर्व ही लक्षणो मे एक यही भाव ओतप्रोत है । सदा शिव वादियो की दृष्टि का आधार शुद्ध द्रव्यार्थिक का यही लक्षण है । स्वचतुष्टय के साथ तन्मय स्वलक्षणभत किसी अनिर्वचनीय व अभेद त्रिकाली शुद्ध पारिणामिक भाव मई वह द्रव्य स्वत. सिद्ध है। उसकी सत्ता में अन्य किसी पदार्थ की अपेक्षा करने की क्या आवश्यकता अन्य चेतन या अचेतन समस्त पदार्थों की सहायता से रहित नि सहाय तत्व सर्वथा स्वतत्र है । अत. पर द्रव्य, पर द्रव्य का क्षेत्र, पर द्रव्य का काल या पर्याय तथा पर द्रव्य के भाव या गुणो के साथ उसका किसी भी प्रकार का सयोग सम्बन्ध या निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध या कार्य कारण आदि सम्बन्ध स्वीकार नही किया जा सकता । ऐसा शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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