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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य
है । गुरु दयालु है । उनकी दृष्टि में केवल विज्ञजन ही नही है, बल्कि मन्द बुद्धिजन भी है, जो बिना विशेषताओ के जाने वस्तु का स्पष्ट ज्ञान नही कर सकते । बस अनेक अनुग्रह के अर्थ अभेद को भी कोई रूप से दर्शाने का प्रयत्न करते है । मन्द बुद्धियों के लिये कहे गये विस्तृत कथन मे से तो विज्ञजनो का उपकार सहज हो जाता है, परन्तु विज्ञजनो के लिये कहे गये सक्षिप्त कथन मे से मन्द बुद्धि जनो का उपकार नही हो पाता, इसलिये अभेद को भेद करके अनेक प्रकार से दर्शाना इष्ट ही है । इसी प्रयोजन को सिद्धि के अर्थ अब द्रव्यार्थिक नय के कुछ भेद दर्शाते है । इतना यहां अवश्य समझते रहना कि विशेषताये स्पष्ट करने के लिये ही यह भेद बताये जा रहे है इनको समझ कर भी अन्त में इन्हे फिर अभेद व एक रस करके ही देखना होगा, तब ही परिपूर्ण वस्तु के अनुरूप अपने ज्ञान को बना सकोगे, अन्यथा नही । और इसीलिये इन भेदो की कदाचित द्रव्यार्थिक नाम देना भी उपयुक्त न हो सकेगा । अब उन भेदो को सुनिये ।
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४. द्रव्यार्थिक नय के भेद
वैसे तो द्रव्यार्थिक के अनेको भेद प्रयोजज वश किये जा सकते है । परन्तु यहा तो उनमे से कुछ का ही ग्रहण किया जाना सम्भव है । द्रव्यार्थिक नय द्रव्य के अनुरूप होता है । मुख्यत द्रव्य को दो प्रकार से देखा जा सकता है ।
उसे नित्य शुद्ध रूप से अर्थात गुण गणी आदि के भेदो से निरपेक्ष एक अखण्ड भाव रूप से भी देखा जा सकता है और,
अनेकों गुण व पर्यायो के भेदो के सापेक्ष उनके समुदाय रूप से भी ।