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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६५
२. द्रव्यार्थिक नय
सामान्य के लक्षण भेद नहीं है, कारण कि सत्' से भिन्न कुछ नही है । अथवा सब वस्तु जीव भाव व अजीव भाव आदि के भेद से दो प्रकार है । अथवा सब वस्तु द्रव्य गुण व पर्याय से तीन प्रकार है। इस प्रकार एक को आदि लेकर एक अधिक क्रम से बहिरग व अतरंग (बहिरंग धर्मी अर्थात जीव अजीव आदि द्रव्य और अन्तरग धर्मी अर्थात गुण) धर्मियो का विभाग करना चाहिये, जब तक कि अविभाग प्रतिच्छेद को प्राप्त नहीं होते है । इस प्रकार सभी अनन्त भेद रूप संग्रह प्रस्तार नित्य व शब्द भेद से अभिन्न होता हुआ द्रव्य कहा जाता है । ऐसा द्रव्य ही है अर्थ अर्थात प्रयोजन जिसका वह द्रव्यार्थिक नय है ।
३ ध ।१।१३ गा ८ ".. . । दव्वट्ठियस्स सव्व सदा अणुप्पण्ण
मविणटू ।।"
अर्थ-द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा वे (द्रव्य) सदा अनुत्पन्न और
अविनष्ट स्वभाव वाले है ।
४ पं का ।ता वृ०।२७ ॥५७ "द्रव्याथिकनयेन धर्मा धर्माकाशद्रक__ व्याणि एकानि भवन्ति जीव पुद्गलकालद्रव्याणि पुनरने
कानि ।"
अर्थ-द्रव्याथिक नय से धर्म द्रव्य अधर्म द्रव्य और आकाश
द्रव्य एक एक है और जीव पुदगल और काल द्रव्य अनेक अनेक है। (यहा तद्भाव सामान्य की अपेक्षा अनेकता का ग्रहण समझना।)
५. स भ त० पृ.० ३४ "कालदिाभिरष्टविद्याऽभेदवृत्ति पर्यायाथिक
नयस्य गुणभावेन द्रव्याथिकनयप्राधान्यादुपपद्यते ।"