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१६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६३
२ द्रव्यार्थिक नय
सायान्य के लक्षण ५ श्ल वाः।१।६।१६ पु० २। पृ.३६१ "तन्नाशिन्यपि नि.शेपध
सणां गुणतागतौ। द्रव्याथिकनयस्यैव व्यापारान्मुख्यरूपत. ।१९।"
अर्थ --जब सम्पूर्ण धर्मो को गौण रूप से जानना अभिप्रेत है
और अशीका प्रधान रूप से जानना इष्ट है । तब उस अंशीमे, भी मुख्यरूपसे द्रव्याथिक नय का ही व्यापार माना गया है।
२ लक्षण न:०२ (सामान्य द्रव्य ही है प्रयोजन जिसका)
१ स. सि. ११६ ॥५८ "द्रव्यमर्थः प्रयोजनमस्येत्यसौ द्रव्याथिक ।"
, अर्थ:--द्रव्य ही जिसका प्रयोजन है वह द्रव्याथिक नय है।
- (घ १८३११) (घ ।। ।२७० ११) (नि. सा. ता. वृ० १९) . (आ प १७ पृ० १२१) (प० ध. पू० १५१८) २. वृ० न च. १८६ "द्रव्याथिकेषु द्रव्यं पर्याय पर्याया
थिकेषु विषयः ।"
अर्थ-द्रव्याथिक नयों मे द्रव्य और पर्यायार्थिक नयो मे पर्याय
विषय है।
३ लक्षण ३ (सामान्य या अभेद द्रव्य के निश्चय को द्रव्यार्थिक
नय कहते है।)
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१. क पा ।१ ।१६०।२१६ १७ तद्भावलक्षणसामान्येनाभिन्नं
सादृशलक्षण सामान्येन भिन्नमभिन्नं च वस्त्वभ्युपगच्छन् द्रव्याथिक इति यावत् ।