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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६२ २ द्रव्यार्थिक नय सामान्य के लक्षण १ ३ न च ।१६० "पर्यायं गौणं कृत्वा द्रव्यमपि च यो हि गृहणाति लोके । स द्रव्याथिको भणितो विपरित. पर्यायाथिकः ।१९०। अर्थ -पर्याय या विशेष को गौण करके जो लोकमे द्रव्य या सामान्य को ग्रहण करता है, वह द्रव्याथिक नय है । इससे विपरीत पर्यायार्थिक है। २ न दी ।३।८२ १२५ "तत्र द्रव्याथिकनय द्रव्यपर्यायरूपमेका नेकात्मकमनेकान्त प्रमाणप्रतिपन्नमर्थ विभज्य पर्यायायाथिकनयविपयस्य भेदस्योपसर्जनभावनावस्थानमात्र मभ्युनुजानन् स्वविपय द्रव्यमभेदमेव व्यवहारयति ।” अर्थ ---द्रव्याथिक नय प्रमाण के विषयभूत द्रव्य-पर्यायात्मक, एकानेकात्मक अनेकान्तरूप अर्थका विभाग करके, पर्यायाथिक नय के विषयभूत भेद को गौण करता हुआ, उसकी स्थिति मात्र को स्वीकार कर, अपने विपय द्रव्य को अभेद रूप व्यवहार करता है । ३ का. अ ।२६६ “य साधयति सामान्यं अविनाभूतं विशेषरूपै.। नानायुक्तिबलात् द्रव्यार्थ. स नय. भवति ।२६९ ।' अर्थः-जो नय वस्तु को विशेष रूप से अविनाभूत सामान्य स्वरूप को अनेक प्रकार की युक्ति के बल से सिद्ध करता है वह द्रव्याथिक नय है । ४ स. सा ।प्रा. १३ "द्रव्यपर्यायात्मके वस्तुनि द्रव्यं मुख्यतयानु___ भावयतीति द्रव्याथिकः ।" अर्थ- द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु मे द्रव्य को मुख्य रूप से अनुभव करता है वह द्रव्याथिक नय है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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