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१२. तीनो का समन्वय
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साथ कोई सम्बन्ध न होने पर भी शब्द अर्थ का वाचक हो जाये इसमे क्या आपत्ति है और यदि शब्द व अर्थ मे यह वाच्य वाचक सम्बन्ध स्वीकार है तो शब्द मे दोष आने पर श्रोता के द्वारा ग्राह्य अर्थ मे कैसे दोष न आऐगा ।
१५ शव्दादि तीन नय
६ प्रश्न - " प्रमाण और अर्थ मे तो ज्ञायक ज्ञेय सम्बन्ध पाया जाता है ?"
उत्तर:- "नही, क्योकि वस्तु की शक्ति की अन्य से उत्पत्ति मानने में विरोध आता है । अर्थात जो वस्तु जैसी है उसको उसी रूप से जानने की शक्ति को प्रमाण कहते है । वह शक्ति से उत्पन्न नही हो सकती । यदि प्रमाण और अर्थ में स्वभाव से ही ग्राह्य ग्राहक सम्बन्ध स्वीकार किया जाता है तो शब्द और अर्थ मे भी स्वभाव से ही वाच्य वाचक सम्बन्ध क्यो नही मान लिया जाता" ?
७ शंका - " शब्द और अर्थ में यदि स्वभाव से ही वाच्य वाचक सम्बन्ध है तो फिर वह पुरुष व्यापार की अपेक्षा क्यों करता है ?
उत्तर -“प्रमाण यदि स्वभाव से ही अर्थ से सम्बद्ध है तो फिर वह इन्द्रिय व्यापार या आलोक (प्रकाश) की अपेक्षा क्यो रखता है ! इस प्रकार शब्द और प्रमाण दोनो मे शंका और समाधान समान है । फिर भी यदि प्रमाण को स्वभाव से ही पदार्थो का ग्रहण करने वाला माना जाता है तो शब्द को भी स्वभाव से अर्थ का वाचक मानना चाहिये ।