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१५ शब्दादि तीन नय
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१०. एवभूत नय का लक्षण
करता है उसे एवभूत नय कहते है। इस नय की दृष्टि से पदो का समास नही हो सकता, क्योकि भिन्न भिन्न काल वर्ती और भिन्न अर्थवाले शब्दों मे एक पने का विरोध है । इसी प्रकार शब्दों में परस्पर सापेक्षता भी नही है । क्योकि, वर्ण अर्थ, सख्या और कालादिकके भेद सेभेद को प्राप्त हुए पदों के दूसरे पदों की अपेक्षा नही बन सकती है । जबकि एक पद दूसरे पद की अपेक्षा नही रखता है तो इस नय की दृष्टि में वाक्य भी नही बन सकता है यह बात सिद्ध हो जाती है ।
२. क पा |पु १।पृ २४२ ।१ '' एवम्मवनादेव भूत । अस्मिन्नये न पदानासमासोऽस्ति, स्वरूपत कालभेदेन च भिन्नानामेकत्वविरोधात् । न पादानामेककालवृत्ति समास क्रमोत्पनाना क्षणक्षयिणा तदनुपपत्ते । नेकार्थे वृत्ति समास, भिन्नपदानामेकार्थे वृत्त्यनुपपत्ते । न वर्णसमासोत्यस्ति, तत्रापि पदसमासोक्तदोषप्रसगात् । तत् एक एववर्ण एकार्थ वाचक इति पदगतर्णमात्रार्थं एकथं इत्येवम्भूताभिप्रायवान् एवम्भूतनय
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अर्थ -- 'एवम्भूतात्' अर्थात जिस शब्द का जिस क्रियारूप अर्थ है, तद्रूप क्रिया से परिणत समय मे ही उस शब्द का प्रयोग करना युक्त है, अन्य समयो मे नही, ऐसा जिस नय का अभिप्राय है उसे एवभूत कहते है । इस नय मे पदो का समास नही होता है, क्योकि जो पद स्वरूप और काल की अपेक्षा भिन्न है, उन्हे एक मानने में विरोध आता है । यदि कहा जाहे कि पदो मे एककालवृत्तिरूप समास पाया जाता है, सो कहना भी ठीक नही है, क्योकि पद से से ही उत्पन्न होते हैं और वे जिस क्षण मे उत्पन्न होते है उसी क्षणमे विनष्ट हो जाते है, इसलिये अनेक पदो का एक