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१५. शब्दादि तीन नय
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१० एवंभूत नय का
लक्षण
का भेद रूप से प्रज्ञापन करता है वह एवभूत नय में गर्भित होता है ।२१९ ।
६. नय चक्र गद्य पृ १८ " यस्मिन्काले क्रियाया च वस्तुजात प्रवर्तते । तथा तन्नामवाच्य स्यादेवभूतो नयो मतः ।”
अर्थ -- जिस काल मे जो वस्तु जिस क्रिया में वस्तु जात रूप से प्रवर्तती है उस समय वह वस्तु उसी नाम की वाच्य है, ऐसा एवभूत नय का मत है ।
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१०. ना. प ।१६। पृ १२५ " एवक्रियाप्रधानत्वेन भूयन इत्येवंभूत ।” " एवं अर्थात क्रिया की प्रधानता से जो होता है सो एवभूत है ।
११ अभिधान राजेन्द्र कोष "यक्रिया विशिष्ट शब्देनोच्यते, तामेव क्रिया कुर्वं द्वरत्वेवभूतमुच्यते । एवशब्देनोच्यते चेष्टाक्रियादिक: प्रकार, तमेवभूत प्रात्तमिति कृत्वा ततश्चैवंभूतवस्तुप्रतिपाद को नयोऽप्युपचारादेवंभूत । अथवा एव शब्देनोच्यते चेष्टाक्रियादिक. प्रकार, तद्विशिष्टस्यैव वस्तुनोऽभ्युपगमात्तमेवभूत प्राप्त एवंभूत इत्युपचारमन्तरेणापि व्याख्यायते स एवभूतो नय' ।”
अ - जिस क्रियाविशिष्ट शब्द के द्वारा कही जाये, उस ही क्रिया को करती हुई वस्तु एवंभूत कहलाती है । 'एव' शब्द का अर्थ चेष्टा व क्रियादिक का रूप दर्शाने वाला है । उस एवंभूत क्रिया को प्राप्त करने वाली वस्तु भी एवभूत है । उस एवभूत वस्तु की प्रतिपादक होने के कारण यह नय भी उपचार से एवभूत कहलाता है ।