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१५. शब्दादि तीन नय
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१० एवभूत नय का
लक्षण
मे घड़े को 'घट' नहीं कहा जा सकता। क्योंकि जिस तरह पट को घट नहीं कहा जा सकता उमी तरह घड़े को भी जल लाने आदि कि क्रिया रहित अवस्था में घट नहीं कहा जा सकता। शशविषाण की तरह अतीत और अनागत अवस्थाओं को नष्ट और अनुत्पन्न होने के कारण, अतीत और अनागत अवस्थाओं को लेकर सामान्य से शब्दों का प्रयोग नही किया जा सकता । यदि अतीत और अनागत पर्यायो की अपेक्षा शब्द के वाच्यरूप पर्याय का अभाव होने पर भी घड़े को घट कहा जाये, तो कपाल और मिट्टी के पिंड में भी घट शब्द का व्यवहार होना चाहिये । अतएव जिस क्षण मे किसी शब्द का व्युत्पत्ति का निमित्त कारण सम्पूर्ण रूप से विद्यमान हो उसी समय उस शब्द का प्रयोग करना उचित है । यह एवंभूत नय है।
वस्तु अमुक क्रिया करने के समय ही अमुक नाम से कही जा सकती है । वह सदा एक शब्द का वाच्य नहीं हो सकती, इसे एवंभूत नय कहते है ।
जिस समय पदार्थो में जो क्रिया होती हो उस समय उस क्रिया से अनुरूप शब्दोंसे अर्थ के प्रतिपादन करने को एवंभूत नय कहते हैं। जैसे परम , ऐश्वर्य का अनुभव करते समय इन्द्र, समर्थ होने के समय शक और नगरों
का विभाग करने के समय पुरन्दर कहना । ४ लधीयस्त्रय श्ल. ४४ "इत्थम्मूतः क्रियाश्रय.।" अर्थ --इत्थंभूत नय क्रियाश्रित है। (प्रमाण स० एल० ८३) क्त. श्ल. वा ६ २७४)