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१५ शब्दादि तीन नय
१०. एवभूत नय का
लक्षण क्योकि उसमें वैसी योग्यता नही है । किन्तु योग्य शब्द योग्य ही अर्थ का व्यवच्छेदक होता है, अतएव अतिप्रसंग नहीं आता।
शंका-शब्द और अर्थ के योग्यता कहां से आती है ?
उत्तर.-स्व और पर से उनके योग्यता आती है।
__ इस कारण वाचक के भेद से वाच्य भेद भी अवश्य होना चाहिये ।
२. क. पा.पु १। प.० २४१
उत्तर.-जिस प्रकार प्रमाण, प्रदीप. सूर्य, मणि और चन्द्रमा
आदि पदार्थ घट पट आदि प्रकाश्यभूत पदार्थो से भिन्न रह कर ही उनके प्रकाशक देखे जाते है, तथा यदि उन्हे सर्वथा भिन्न माना जाये तो उनमे प्रकाश्य प्रकाशक भाव नही बन सकता है, उसी प्रकार शब्द अर्थ से भिन्न होकर भी अर्थ का वाचक होता है ऐसा समझना चाहिये । इस प्रकार जब शव्द अर्थ का वाचक सिद्ध हो जाता है तो वाचक शब्द के भेद से उसके वाच्यभूत अर्थ में भेद होना ही चाहिये।
इस प्रकार शब्द और अर्थ मे स्वभाविक वाच्य वाचक भाव रूप अभद तो इस नय की उत्पत्ति का कारण है और वाचक शब्द के अर्थ भद पर से वाच्य पदार्थ मे भेद देखना इसका प्रयोजन है ।
___ जैसा कि इस के नाम पर से विदित है, यह नय वस्तु को अत्यंत 7° एवं भूत सूक्ष्म दृष्टि से देखता हुआ ही उस का संज्ञा करण नय का लक्षण करने मे प्रवति करता है । ‘एवं' अर्थात जिस