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१५ शब्दादि तीन नय
६. शब्द नय का लक्षण
७. बृ. न. च गद्य पृः।१७“लक्षणस्य प्रवृत्तौ वा स्वभावाविष्टलि गितः । शब्दो लिग स्वसंख्या चन परित्यज्य वर्तते ।"
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अर्थ -- किसी पदार्थ का लक्षण करते हुए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाये, उन्हें उस पदार्थ के स्वभाव से चिन्हित लिग व संख्या आदि को छोड़कर नही वर्तना चाहिये ।
वृ. न च, 1२१४ " अथवा सिद्धे व्यवहरणम् । स ख'लु शब्दे देव: ।२१४।”
ग्रा. प. पृ७६ आप ।"
शब्दे क्रियते यात्किमपि अर्थ विपय: देव शब्देन यथा
अर्थः- नित्य प्रयोग मे आने वाले शब्दों मे जो कुछ भी अर्थ का भेद करने मे आता है, वह ही शब्द नय का विषय है, जैसे देव शब्द द्वारा केवल 'देव' का ग्रहण होता है ।
'' शब्दनयो यया दाराभार्याकलत्रं, जल
अर्थ - शब्द नय को ऐसा जानो जैसे दारा, ये तीनों शब्द पैया जल व आप ये दो शब्द ।
भार्या और क्लत्र
(यहा ऐसा तात्पर्य समझना कि यद्यपि उपरोक्त शब्द लोक व्यवहार मे एकार्थवाची माने जाते है, परन्तु भिन्न लिगी होने के कारण इन मे अर्थ भेद अवश्य है । 'दारा' शब्द पुलिंगी है, 'भार्या' स्त्री लिगी है और 'कलत्र' शब्द नपुंसक लिगी है और इसी प्रकार 'जल' शब्द नपुंसक लिगी एक वचनान्त है और 'आय:' शब्द स्त्री लिंगी वहुवचनान्त है । अत. इन शब्दों का अर्थ समान नही है ।
स० म० ।२८ ।३१३।३० " यथा चाय पर्याय शब्दानामेकमर्थमभित्रेति तथा तटस्तटीतरम् विरूध्दलिंगलंक्षणधर्माभि