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१५. शब्दादि तीन नय
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६. शब्द नय का लक्षण
ही वे 'जिसने समस्त विश्व को देख लिया है' अथवा 'आगे होने वाला कार्य हो चुका है' इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग करके भविष्यत काल के साथ अतीत काल का अभेद मानते हैं। यहां इन वाक्यों में "भूत भविष्यत काल सम्बन्धी भेद स्पष्ट देखने मे आता है तो भी इस प्रकार के प्रयोगों का व्यवहार देखा जाता है" उपरोक्त प्रकार के प्रयोगों को युक्त दर्शाने के लिये वह यही हेतु दिया करते है । परीक्षा करने पर यह स्पष्ट है कि वास्तव में तो होने वाला पुत्र आगे जाकर विश्व को देखेगा, उत्पन्न होने से पहिले ही जिस ने विश्व को देख लिया है' ऐसा कहना न्याय संगत नही है। अत 'जो विश्व को देखेगा ऐसा पुत्र उत्पन्न होगा' इस प्रकार का प्रयोग होना चाहिये था । परन्तु केवल व्यवहारिक प्रवृत्ति के आधार पर 'जिसने विश्व को देख लिया है ऐसा पुत्र उत्पन्न होगा' इस प्रकार के प्रयोगों द्वारा भविष्य काल मे अतीत काल का अभेद उनकी व्याकरण मे न्याय माना गया है ।
परीक्षा की मूल क्षति होने पर भी यदि इस प्रकार का प्रयोग ठीक मान जायेगा तो काल भेद में भी अर्थ के अभेद का प्रसंग आयेगा और अतीत काल वर्ती रावण, तथा अनागत काल वर्ती शंखचक्रवर्ती की एकता मानने का प्रसग प्राप्त होगा । यदि इस दोष को टालने के लिये यह कहा जाये कि 'रावण राजा था, और 'शख चक्रवर्ती आगे होगा' इस प्रकार यहां विषय की भिन्नता है, अतः उपरोक्त एकार्थता का दोष यहां प्राप्त नही होता; तो जिस ने विश्व को देख लिया है' और 'उत्पन्न होगा' इन दोनों में भी एकार्थता न होवे । भावि पुत्र