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१५. शब्दादि तीन नय ३६१ ४ वचन के दो प्रकार
भूतेषु प्रवृत्तिनिमित्तस्य भिन्नस्यैकस्यैवार्थस्याभिधानात् भेदेनाभिधानम् ।"
अथवा अन्यथा द्वैविध्यम्-एकस्मिन्नर्थेऽनकशब्दप्रवृत्ति प्रत्यर्थ वा शब्दविनिवेश इति । यथाशब्दे अनेकपर्यायशब्दवाच्य एकः । समभिरूढे वा नैमित्तिकत्वात् शब्दस्यैकशब्दवाच्य एक. । एव भूते वर्तमानक्रियानिमित्तशब्द एकवाच्य एकः।"
अर्थ-शब्द नय व्यञ्जन पर्यायो को विषय करता है । वे
(तीनों ही शब्द नये) अभेद तथा भेद दो प्रकार के वचन प्रयोग को सामने लाते है । तहा अभेद (अभेद वचन का प्रयोग दो प्रकार से हो सकता है अनेक पर्यायवाची शब्दों द्वारा एक ही वाच्य पदार्थ का कथन करना, तथा एक शब्द से प्रवृत्ति व अप्रवृत्ति निमित्तिक, अनेक पर्यायो से समवेत, एक ही सामान्य पदार्थ का कथन करना) जैसे -
शब्दनय मे पर्याय वाची विभिन्न शब्दो का प्रयोग होने पर भी उसी अर्थ का कथन होता है, अत अभेद है।
(1) समभिरूढनयमे घटनक्रियाम परिणत, अपरिणत,अभिन्न
ही घट का निरूपण होता है, (अत अभेद है) ।
भेदः-(भेद वचन का प्रयोग एक ही प्रकार से होता है) जैसे
एव भूत मे प्रवृत्ति निमित्त से भिन्न एक ही अर्थ का निरूपण होता है अर्थात भिन्न भिन्न समयो मे भिन्न भिन्न प्रवृत्तियो या पर्यायो से परिणत एक ही द्रव्य के भिन्न भिन्न नाम होते है।