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१५. शब्दादि तीन नय ३८७ २. तीनो का विपय
एकत्व मे या पर्याय व द्रत्य मे या दो भिन्न पदार्थो मे कार्य कारण आदि • सम्बन्ध उत्पन्न नहीं किया जा सकता । यह भी ऋजुसूत्र वत् केवल एक ही संख्या को ग्रहण करता है। कहा भी है:क. पा. १६३१६।२५ "नगम सग्रह व्यवहार और स्थूल ऋजुसूत्र
· · · इन नयों में कार्य कारण भाव सम्भव है । शब्द समभिरूढ और एवं भूत इन तीनो शब्द नयों · · ·की
दृष्टि मे कारण के बिना ही कार्य की उत्पन्नि होती है। २. ध. ।१२।२६२।२६ "तीनों शब्द नयों की अपेक्षा. . . .
(निमित्त से कार्य की उत्पत्ति नहीं होती, न ही पूर्व पर्याय से होती है) क्योकि (इन नयो मे) पर्यायों से
रहित सामान्य द्रव्य का अभाव है।" ३ ध.।१२।सू. १४/पृ. ३०० " (तीनों) । शब्द और ऋजुसूत्र
नय की अपेक्षा ज्ञानावरणीय वेदना (एक) जीव के ही होती है । (नैगम व्यवहारवत् कर्म स्कन्ध के अथवा
संग्रह नयवत् बहुत जीवों के नहीं होती।" ४. ध.।१२।३००।२७ “(इन ऋजुसूत्र व तीनों शब्द नयो की
अपेक्षा) सभी वस्तु एक संख्या से सहित है, क्योकि इसके बिना उसके अभाव का प्रसग आता है । एकत्व को स्वीकार करने वाली वस्तु मे द्वित्व की सम्भावना भी नही है। क्योकि उनमे शीत व उष्ण के समान सहानवस्थान रूप विरोध देखा जाता है। इसके अतिरिक्त एकत्व से रहित वस्तु है भी नही, जिससे कि वह अनेकत्व का आधार हो सके।"
५. रा. वा ।१।३३।१०।६६।२ "यथा क्व भवानास्ते ? स्वात्म
नीति । कुत. ? वस्त्वन्तरे वृत्यभावात् ।"